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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ऐसे गच्छों से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों का कम होना स्वाभाविक है। यहां उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
साहित्यिक साक्ष्यों की तुलना में अभिलेखीय साक्ष्यों का प्राचीनतर होने और संख्या की दृष्टि से अधिक होने के साथ अध्ययन की सुविधा आदि को नज़र में रखते हुए सर्वप्रथम इनका और तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण दिया जा रहा है:
जीरापल्लीगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम लेख इस गच्छ के आदिम आचार्य रामचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । वर्तमान में यह प्रतिमा शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर में संरक्षित है। श्री पूरनचन्द नाहर ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है :
सं. १४०६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ९ रवौ सा...... कुटुम्ब श्रेयो) श्री आदिनाथ बिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं जीरापल्लीयैः श्रीरामचन्द्रसूरिभिः ।।
जैनलेखसंग्रह, भाग- २, लेखांक १०४९
इस गच्छ का उल्लेख करने वाला द्वितीय लेख वि० सं० १४११ का है जो जीरावाला स्थित जिनालय में पार्श्वनाथ की देवकुलिका पर उत्कीर्ण है। मुनि जयन्तविजय ने इसकी वाचना दी है, जो निम्नानुसार है :
सं० १४११ वर्षे चैत्र वादि ६ बुधे अनुराधा नक्षत्रे बृहद्गच्छीय श्रीदेवचन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरीणां तपोवन तपोधन तपस्वीकरपरिवृतानां श्रीपार्श्वनाथस्य देवकुलिका जीरापल्लीयैः श्रीरामचन्द्रसूरिभिः कारिता छः ॥
अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ११९ इस गच्छ से सम्बद्ध अन्य लेखों का विवरण इस प्रकार है :
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