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________________ धर्मघोषगच्छ ५६१ नंदिवर्धनसूरि के शिष्य पाठक गुणरत्न का उल्लेख करनेवाला एक मात्र साक्ष्य होने से इस प्रशस्ति का विशिष्ट महत्त्व है । ३- कल्पसूत्र १५ – इस पुस्तक की मुनिराज श्री पुण्यविजयजी के संग्रह में एक प्रति सुरक्षित है । यह प्रति मुनि उदयराज के वाचनार्थ लिखवायी गयी । यह बात इसकी दाता प्रशस्ति से ज्ञात होती है । इस प्रशस्ति की विशेषता यह है कि इसमें धर्मघोषगच्छीय आचार्य पद्माणंदसूरि और नंदिवर्धनसूरि को राजगच्छीय कहा गया है। जैसा कि प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है धर्मघोषगच्छ का राजगच्छ की एक शाखा के रूप में ही उदय हुआ । १७ वीं शताब्दी में दोनों ही गच्छों का पूर्व प्रभाव समाप्तप्राय हो चुका था और उनका अलग-अलग स्वतन्त्र अस्तित्व भी नाम मात्र का ही रहा होगा । ऐसी स्थिति में एक समकालीन लिपिकार अथवा मुनि द्वारा उन्हें राजगच्छीय कहना अस्वाभाविक नहीं लगता । अंतिम दोनों दाताप्रशस्तियों से जो गुर्वावली निर्मित होती है, वह इस प्रकार है - तालिका-४ पाठक गुणरत्न वि० सं० १५५० में लघुक्षेत्रसमासवृत्ति के प्रतिलिपिकार नंदिवर्धनसूरि Jain Education International पुण्यराजसूरि । उदयराजसूर वि० सं० १६१२ पूर्व प्रदर्शित तालिका संख्या ३ के सम्बन्ध में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इसमें एक ओर मलयचन्द्रसूरि के गुरु सोमचन्द्रसूरि का उल्लेख है, परन्तु सोमचन्द्रसूरि के गुरु कौन थे ? यह हमें ज्ञात नहीं होता । दूसरी ओर इस तालिका से यह भी ज्ञात होता हैं कि ज्ञानचन्द्रसूरि के शिष्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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