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________________ ५६२ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सागरचन्द्रसूरि के पश्चात् उनकी शिष्य संतति के बारे में अभिलेखीय साक्ष्य मौन हैं । क्या सागरचन्द्रसूरि की शिष्य सन्तति आगे नहीं चली ? ये दो ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर के लिये हमें अन्यत्र प्रयास करना होगा। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, धर्मघोषगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत एक पट्टावली भी उपलब्ध है, वह है एक अज्ञात लेखक द्वारा १६ वीं शती के अन्तिम चरण के आस-पास लिखी गयी राजगच्छीयपट्टावली'५ । इसमें न केवल राजगच्छीय आचार्यों अपितु इस गच्छ की शाखा धर्मघोषगच्छ के आचार्योंज्ञानचन्द्रसूरि, सागरचन्द्रसूरि, मलयचन्द्रसूरि, पद्मशेखरसूरि आदि का भी उल्लेख है। पूर्वं प्रदर्शित तालिका २ और ३ में भी उक्त आचार्यों का नामोल्लेख है, अत: इस पट्टावली की प्रामाणिकता असंदिग्ध है। राजगच्छीयपट्टावली में सागरचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में मलयचन्द्रसूरि का उल्लेख है, जब कि पूर्व में सोमचन्द्रसूरि के पट्टधर के रूप में मलयचन्द्रसूरि का नाम आया है ।१९ ऐसा प्रतीत होता है कि मलयचन्द्रसूरि के दीक्षागुरु सोमचन्द्रसूरि थे एवं सागरचन्द्रसूरि ने उन्हें अपने पट्ट पर प्रतिष्ठित किया। जहाँ तक सोमचन्द्रसूरि और सागरचन्द्रसूरि का प्रश्न है, वे परस्पर गुरुभ्राता हो सकते हैं क्यों कि किसी आचार्य द्वारा अपने उत्तराधिकारी के रूप में स्वदीक्षित योग्य शिष्य के अभाव में अपने गुरुभ्राता के शिष्य को अपना पट्टधर बनाना अस्वाभाविक नहीं है। उक्त चारों तालिकाओं में दर्शित गुर्वावलियों को परस्पर समायोजित करने से धर्मघोषगच्छीय आचार्यों का एक विस्तृत विद्यावंशवृक्ष तैयार हो जाता है, जो इस प्रकार है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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