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________________ चन्द्रगच्छ ___४१३ राजहंस उपाध्याय वाचनाचार्य संयमहंस (वि० सं० १६०५/ ई. सन् १५४९ में जीवाभिगमसूत्र के प्रतिलिपिकार) उक्त सभी साहित्यिक साक्ष्यों में उल्लिखित चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) की छोटी - बड़ी गुर्वावलियों से अनेक मुनिजनों के नामों का पता चलता है, परन्तु इनमें से दो-तीन गुर्वावलियों को छोड़कर अन्य सभी गुर्वावलियों के परस्पर समायोजित न हो पाने के कारण इस गच्छ की गुरु - परम्परा की एक अविच्छिन्न तालिका को संगठित कर पाना असम्भव सा लगता (ग) अभिलेखीय साक्ष्य । चन्द्रकुल (चन्द्रगच्छ) से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण निम्नानुसार है । जैसा कि लेख के प्रारम्भ में कहा जा चुका है। अकोटा से प्राप्त कुछ धातुप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण अभिलेखों में भी इस कुल का उल्लेख मिलता है । प्राध्यापक उमाकांत पी० शाह ने इनका काल प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन और लिपि के आधार पर ईस्वी सन् की छठी शताब्दी से ईस्वी सन् की १० वीं शताब्दी तक निर्धारित किया है। इनका विवरण इस प्रकार अकोटा से प्राप्त चन्द्रकुल का उल्लेख करनेवाला प्रथम लेख जीवन्तस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। शाह" महोदय ने इसकी वाचना निम्नानुसार दी है : १. ॐ देवधर्मोऽयं जीवंतसामी २. प्रतिमा चद्र (चन्द्र) कुलिकस्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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