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श्वेताम्बर श्रमण संघ का प्रारम्भिक स्वरूप न ही उनके गुरु-परम्परा का वस्तुतः यह एक ऐसी तालिका है, जिसमें देववाचक ने अपने पूर्ववर्ती आचार्यों का श्रद्धावश स्मरण किया हैं। नन्दीचूर्णी के कर्ता जिनदासगणि महत्तर ने उन्हें (देववाचक को) दृष्यगणि का शिष्य कहा है। यद्यपि देववाचक ने 'स्थविरावली' के अन्त में दूष्यगणि का नाम दिया है परन्तु • उन्हें कहीं भी अपना गुरु नहीं कहा है।
कल्पसूत्र 'स्थविरावली' के तृतीय भाग में देसीगणि (दूष्यगणि) का नाम आ चुका है जिन्हें देववाचक के गुरु दूष्यगणि से अभिन्न मानने में कोई बाधा नहीं है । इस प्रकार कल्पसूत्र 'स्थविरावली' के आधार पर संकलित तालिका को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है :
आर्यरथ
आर्यधर्म
आर्यजम्बू
आर्य शाण्डिल्य
नंदियमापिय
दुष्यंगणि
देववाचक स्थिरगुप्त क्षमाश्रमण (नन्दीसूत्र के कर्ता)
कुमारधर्म
देवर्धिगणी क्षमाश्रमण(वीर निर्वाण ९५० अथवा ९९३ में वलभी में आगमों को पुस्तकारूढ करनेवाली वाचना के प्रधान)
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