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________________ ३७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भावदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, वीरसूरि और जिनदेवसूरि- ये चार नाम पुन: पुन: प्राप्त होते हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि यह चैत्यवास समर्थक गच्छ था, क्योंकि पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति की परम्परा चैत्यवासियों में ही दिखाई देती है । प्रभावकचरित के 'वीरसूरिचरितम्' से ज्ञात होता है कि भावदेवसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य थे । उनके पट्टधर महान् वादी विजयसिंहसूरि हुए, जिनके शिष्य एवं पट्टधर वीरसूरि थे। ये चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० १९५० - १९९९) के मित्र एवं इस गच्छ के महान् आचार्य थे । वि० सं० १९६० में उन्होंने बौद्धाचार्य, दिगम्बर आचार्य कमलकीर्ति और सांख्यवादी वादिसिंह को शास्त्रार्थ में परास्त कर यश प्राप्त किया ।" ६ इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये सीमित संख्या में उपलब्ध साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण इस प्रकार है : १. पार्श्वनाथचरित ( रचनाकाल वि० सं० १४१२ ) ; रचनाकारभावदेवसूरि २. कालकाचार्यकथा भावदेवसूरि ३. यतिदिनचर्या भावदेवसूरि (रचनाकाल - अज्ञात) ४. अलंकारसार-भावदेवसूरि ( रचनाकार - अज्ञात) ५. भक्तामरटीका - शांतिसूरि ( रचनाकाल - अज्ञात) शांतिनाथ जैन ज्ञान भंडार, खंभात में इस ग्रन्थ की एक हस्तलिखित प्रति संरक्षित है, जो वि० सं० १५वीं शती प्रारम्भ की मानी जाती है। जहां तक प्रथम दो रचनाओं के रचनाकारों के नामसाम्य का प्रश्न है, ब्राउन ने कालकाचार्यकथा कर्ता भावदेवसूरि को पार्श्वनाथचरित के कर्ता भावदेवसूरि से अभिन्न माना है । यतिदिनचर्या और अलंकारसार के रचनाकार भावदेवसूरि पार्श्वनाथचरित के कर्ता भावदेवसूरि से अभिन्न हैं अथवा अलग-अलग, यह कहना कठिन है 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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