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________________ ४८३ चैत्रगच्छ प्रतिष्ठास्थान - पार्श्वनाथ जिनालय, करेड़ा । जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है भर्तृपुरीय शाखा से सम्बद्ध द्वितीय लेख वि० सं० १३३५ / ई. सन् १२७८ का है, जो चित्तौड़ से प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख श्याम पार्श्वनाथ के मंदिर में लगा था जो मंदिर नष्ट हो जाने से चित्तौड़ के प्राचीन महलों के एक चौक में गौरीशंकर हीराचंद ओझा को गड़ा हुआ मिला । उन्होंने इसे उदयपुर संग्राहलय में सुरक्षित रखवा दिया । संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध इस लेख में ५ पंक्तियां हैं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार यह लेख ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस लेख के अनुसार चैत्रगच्छ की भर्तृपुरीय शाखा के आचार्य (अभिलेख का मूलपाठ उपलब्ध न हो पाने के कारण इनका नाम ज्ञात न हो सका) के उपदेश से रावल तेजसिंह की रानी जयतल्लदेवी ने चित्तौड़ में श्याम पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया । इस लेख से यह भी ज्ञात होता है कि इसी जिनालय के पिछले भाग की भूमि महारावल समरसिंह ने चैत्यालय और मंदिर के व्यय के लिये दान में दिया था। यह लेख वि० सं० १३३५ वैशाख सुदि ५ गुरुवार का है। एक शैव शासक की रानी द्वारा एक जैन आचार्य के उपदेश से जिनालय का निर्माण कराना और उसी वंश के दूसरे शासक द्वारा उक्त जिनालय और उससे सम्बद्ध उपाश्रय के लिये भूमि दान में देना उस समय के शासकों द्वारा पालन किये जा रहे धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुपम उदाहरण है। इस लेख से यह भी ज्ञात होता है कि उस काल में विभिन्न नगरों के व्यापारिक संगठनों से प्राप्त कर का कुछ भाग धार्मिक कार्यों में भी लगाया जाता था। भर्तृपुरीय शाखा से सम्बद्ध तृतीय लेख वि० सं० १३३८ / ई. सन् १२८२ का है, जो शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । मुनि जयन्तविजयजी" ने इस लेख की वाचना इस प्रकार दी है : "संवत् १३३८ श्री चैत्रगच्छे भर्तृपुरीय सा० खुनिया भा० होली पु. हरपा केशव वाण रावण बेल पु. नरसिंह खीमड हरिचंदेण निजपूर्वजपित्रोः श्रेयार्थं श्रीशांतिनाथबिंब का० श्रीवर्धमानसूरिभिः ॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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