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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास १३४६-१३७३ प्रतिमालेख] को नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के कर्ता कक्कसूरि और उनके गुरु सिद्धसूरि से समसामयिकता के आधार पर अभिन्न मान सकते हैं । इसी प्रकार वि०सं० १३५२ में प्रतिलिपि कृत उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधावृत्ति में उल्लिखित सिद्धसूरि भी उपरोक्त सिद्धसूरि से अभिन्न प्रतीत होते हैं । इसी प्रकार ककुदाचार्य संतानीय देवगुप्तसूरि [वि०सं० १३१४-१३२३ प्रतिमालेख] तथा उपकेशगच्छप्रबन्ध
और नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के रचनाकार कक्कसूरि के प्रगुरु और सिद्धसूरि के गुरु देवगुप्तसूरि को एक ही आचार्य माना जा सकता है।
___ उपकेशगच्छीय मतिशेखर द्वारा रचित धन्नारास [रचनाकाल वि०सं० १५१४/ई० सन् १४५८] और वाचक विनयसमुद्र द्वारा रचित
आरामशोभाचौपाई [वि०सं० १५८३/ई. सन् १५२७] की प्रशस्तियों में रचनाकार द्वारा जो गुरु-परम्परा दी गई है उसकी संगति भी ककुदाचार्य सन्तानीय गुरु-परम्परा से पूर्णतया बैठ जाती है। इनका विवरण इस प्रकार है
धन्नारास - मरु-गुर्जर भाषा में रचित यह रचना उपकेशगच्छीय मुनि शीलसुन्दर के शिष्य मतिशेखर की अनुपम कृति है। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है। जो इस प्रकार है
रत्नप्रभसूरि
यक्षदेवसूरि
देवगुप्तसूरि
सिद्धसूरि
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