SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३१ चन्द्रगच्छ Ibid P. 28 ४. बृहद्गच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १२३८/ ईस्वी सन् ११८२) की प्रशस्ति . Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm-Leaf Mss in The Shanti Natha Jaina Bhandar, Combay, GO. S. No. 149, Baroda 1966 A. D., Pp. 284-286. तपागच्छीय मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १४६६ / ई० सन् १४१९) तपागच्छीय आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य धर्मसागरसूरि द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली (रचनाकाल वि० सं० १६४८ / ई० सन् १५९२) । बृहद्गच्छीय मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छगुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १७५१ । ई० सन् १६९५) राजगच्छ का संक्षिप्त इतिहास इसी पुस्तक में यथास्थान प्रकाशित है। .। आसि सिरिबद्धमाणो पवड्डमामो गुण-सिरीए । २४०॥ एगो ताण जिमेसर-सूरी सूरोव्व उक्कड-पयावो। तस्स सिरि-बुद्धिसागर-सूरी य सहोयरो वीओ ॥ २४५ ॥ तडरुह-अवसडू महीरुहोह-उम्मूलणम्मि सुसमत्था। अज्भ्काय-पवर-तित्था पंचग्गंथी नई पवरा ।। २४८ ॥ तेसि सीस-वरो धणेसर-मुणी एयं कहं पायडं, चड्डावल्लि-पुरी ठिओ से-गुरुणो आणाए पाटंतरा । कासी विक्कम-वच्छरम्मि ए गए वाणंक-सुन्नोडुपे, मासे भदूवए गुरुम्मि कसिणे वीया धणिट्ठा-दिणे ॥ २४९ ।। सुरसुंदरीचरिय, संपा० मुनिश्री राजविजय, जैन विविध साहित्य ग्रंथमाला, ग्रन्थांक १, वाराणसी १९१६ ईस्वी, ग्रन्थकार की प्रशस्ति पृ० २८५-२८६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy