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________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास में समरादित्यसंक्षेप के रचनाकार) वि० सं० २००५ / ई० सन् ९४९ में रचित मुनिपतिचरित के कर्ता जम्बूनाग और वि० सं० १०२५ / ई० सन् ९६९ में रची गयी जिनशतक के रचनाकार जम्बूकवि भी स्वयं को चन्द्रगच्छीय ही बतलाते हैं । किन्तु इन्होंने अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख नहीं किया है। क्या ये दोनों (जम्बूनाग और जम्बूकवि) एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग ! इस सम्बन्ध में पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है, किन्तु चन्द्रकुल से सम्बद्ध प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य होने से ये महत्त्वपूर्ण माने जा सकते हैं। ४०८ इसी प्रकार चन्द्रगच्छीय किन्ही उदयप्रभसूरि द्वारा रचित शीलवतीकथा नामक कृति भी मिलती है, परन्तु इसके रचनाकाल, और ग्रन्थकार की गुरु-परम्परा के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । इस कृति की वि० सं० १४०० / ईस्वी सन् १३४४ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति मिली है 1 (ख) पुस्तक प्रशस्तियां अथवा प्रतिलिपि प्रशस्तियां १. योगशास्त्रवृत्ति की पुस्तकप्रशस्ति कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र द्वारा रची गयी योगशास्त्रवृत्ति की वि० सं० १२९२ / ईस्वी सन् १२३६ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति शांतिनाथ जैन भंडार, खंभात में संरक्षित है जिसके प्रतिलेखन प्रशस्ति में चन्द्रगच्छीय मुनिजनों की गुर्वावली दी गयी है, जो इस प्रकार है : Jain Education International / ? 1 मानदेवसूरि ( प्रथम ) 1 मानतुंगसूरि (प्रथम) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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