SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 480
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्रगच्छ ४३९ प्रकार का सम्बन्ध था, इस बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। विभिन्न अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों से इस गच्छ की कई शाखाओं जैसे भर्तृपुरीयशाखा, धारणपद्रीयशाखा, चतुर्दशीपक्षशाखा, चन्द्रसामीयशाखा, सलषणपुराशाखा, कम्बोइयाशाखा, अष्टापदशाखा, सार्दूलशाखा आदि का भी पता चलता है। अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है चैत्रगच्छ से सम्बद्ध उपलब्ध सबसे प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १४७५ में मेवाड़ में चित्रित कल्पसूत्र की प्रशस्ति । अगरचन्दजी नाहटा ने इसका मूल पाठ दिया है, जो इस प्रकार है: संवत् १४७५ वर्षे चैत्र सुदि प्रतिपदां तिथे । निशानाथदिने श्रीमत मेदपाट देशे सोमेश्वर ग्रामे । अश्विनी नक्षत्रे मेषराशिस्थिते चन्द्रे । विष्कंभयोगे श्रीमत् चित्रवालगच्छे श्रीवीरचन्द्रसूरिशिष्येण धनसारेण कल्पपुस्तिका आत्मवाचनार्थं लिखापितः । लिखित: वाचनाचार्येण शीलसुन्दरेण । श्री श्री श्री शुभं भवतु। . इसके बाद आगे की दो लाईनों पर सफेदा फेर दिया गया है जिससे पीछे वाला लेख पूरा पढ़ा नहीं जा सका, पर उसके अंतिम उल्लेख से स्पष्ट है कि जैसलमेर में जयसुन्दर के शिष्य तिलकरंग को पंचमी तप के उद्यापन में यह प्रति भेंट की गयी थी। उक्त प्रशस्ति के अनुसार चैत्रगच्छीय वीरचन्द्रसूरि के शिष्य धनसार मुनि ने अपने अध्ययन के लिए वाचनाचार्य शीलसुन्दर से वि० सं० १४७५ चैत्र सुदि ११ को उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि करायी। चैत्रगच्छीय वीरचन्द्रसूरि धनसारमुनि (वि० सं० १४७५ में स्व पठनार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy