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________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास राजगच्छीय आचार्य प्रभाचन्द्रसूरि द्वारा रचित प्रभावकचरित (रचनाकाल वि० सं० १३३४ / ई० स० १२७८) में वादिवेताल शांतिसूरि का जीवनपरिचय प्राप्त होता है । उसके अनुसार इनके गुरु का नाम विजयसिंहसूरि था और परमार नरेश भोज ( ई० स० १०१० - १०५५ ) की सभा में उन्होंने वादियों को परास्त किया और वादिवेताल की उपाधि से विभूषित हुए । महाकवि धनपाल की तिलकमञ्जरी का भी इन्होंने संशोधन किया था । प्रभावकचरित के अनुसार वि० सं० १०९६ / ई स० १०४० में इन्होंने सल्लेखना द्वारा उज्जयन्तगिरि पर अपना शरीर त्याग दिया । ५३० | अब शान्तिसूरि तथा उनके गुरु विजयसिंहसूरि का थारापद्रगच्छीय मुनिजनों की पूर्वप्रदर्शित तालिका के साथ समन्वय बाकी रह जाता है । इस सम्बन्ध में इस गच्छ के सम्बद्ध प्रतिमालेखों से प्राप्त मुनिराजों की नामावली से हमें महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है । यद्यपि ये लेख १४वीं से १६वीं शती तक के हैं और उनकी संख्या भी स्वल्प ही है, फिर भी उनसे ज्ञात होता है, कि थारापद्रगच्छ की इस शाखा में सर्वदेवसूरि, विजयसिंहसूरि और शान्तिसूरि इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति होती रही है । विजयसिंहसूर और वादिवेताल शान्तिसूरि का आपस में गुरु-शिष्य का सम्बन्ध तो हमें प्रभावकचरित से ज्ञात हो चुका है, अत: विजयसिंहसूरि गुरु सर्वदेवसूरि नामके आचार्य रहे होंगे, ऐसा मानने में कोई आपत्ति नहीं । इस प्रकार अन्य उत्तरकालीन प्रतिमालेखों के आधार पर थारापद्रगच्छ इस शाखा की गुरु-शिष्य की निम्न प्रकार से तालिका बन सकती है : (सर्वदेवसूरि) Jain Education International विजयसिंहसूरि I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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