SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृष्णर्षिगच्छ का संक्षिप्त इतिहास प्रामध्ययुगीन एवं मध्ययुगीन निर्ग्रन्थदर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय के गच्छों में कृष्णर्षिगच्छ भी एक था । आचार्य वटेश्वर क्षमाश्रमण के प्रशिष्य एवं यक्षमहत्तर के शिष्य कृष्णमुनि की शिष्यसंतति अपने गुरु के नाम पर कृष्णर्षिगच्छीय कहलायी। इस गच्छ में जयसिंहसूरि (प्रथम), नयचन्द्रसूरि (प्रथम), जयसिंहसूरि (द्वितीय), प्रसन्नचन्द्रसूरि (प्रथम व द्वितीय), महेन्द्रसूरि, नयचन्द्रसूरि, (द्वितीय य तृतीय) आदि कई विद्वान् आचार्य हुए हैं । इस गच्छ में जयसिंहसूरि, प्रसन्नचन्द्रसूरि और नयचन्द्रसूरि इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की प्रायः पुनरावृत्ति मिलती है, अतः यह माना जा सकता है कि इस गच्छ के मुनिजन संभवतः चैत्यवासी रहे होंगे। कृष्णर्षिगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये इस गच्छ के मुनिजनों की कृतियों की प्रशस्तियाँ तथा उनकी प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की दाताप्रशस्तियां उपलब्ध हैं । इस गच्छ से सम्बद्ध कोई पट्टावली प्राप्त नहीं होती। अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिवरों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन-प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की चर्चा की जा सकती है। ये लेख वि० सं० १२८७ से वि० सं० १६१६ तक के हैं। यहां उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। कृष्णर्षिगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य है - गच्छ के आदिपुरुष कृष्णर्षि के शिष्य जयसिंहसूरि द्वारा वि० सं० ९१५ / ई. स० ८५९ में रचित धर्मोपदेशमालाविवरण की प्रशस्ति । इसमें जो गुरुपरम्परा दी गयी है, वह इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy