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चन्द्रगच्छ
____४२९ दी है किन्तु रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है। उपदेशकन्दलीवृत्ति की वि० सं० १२९६/ई० सन् १२४० में लिखी गयी एक प्रति पाटन के ग्रन्थभंडार में संरक्षित है।३६ इससे यह सुनिश्चित है कि उक्त तिथि के पूर्व यह वृत्ति लिखी जा चुकी थी । इसका संशोधन बृहद्गच्छीय पद्मसूरि ने किया था । विवेकमंजरीवृत्ति का संशोधन नागेन्द्रगच्छीय आचार्य विजयसेनसूरि और उपरोक्त पद्मसूरि ने किया था। यह बात उक्त कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है । नागेन्द्रगच्छीय आचार्य विजयसेनसूरि का स्वर्गवास वि० सं० १३०१ / ई. सन् १२४५ में हुआ माना जाता है, अतः यह स्पष्ट है कि उक्त तिथि के पूर्व ही विवेकमंजरीवृत्ति की रचना हो चुकी थी। उक्त दोनों वृत्तियों की प्रशस्तियों से यह भी ज्ञात होता है कि आसड़ के पुत्र जैत्रसिंह की प्रार्थना पर उनकी रचना की गयी।३७
उपदेशकंदली की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह कृति चंद्रगच्छीय देवेन्द्रसूरि के प्रशिष्य और भद्रेश्वरसूरि के शिष्य अभयदेवसूरि के अनुरोध पर रची गयी । यही अभयदेवसूरि बालचंद्रसूरि के प्रगुरु थे, यह बात उपदेशकन्दलीवृत्ति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है।
६. विनयचन्द्रसूरि - विनयचंद्रसूरि नामधारी मुनि द्वारा रची गयी कई कृतियां मिलती है । यथा मल्लिनाथचरित, मुनिसुव्रतचरित, पार्श्वनाथचरित, कालकाचार्यकथा, दीपावलीकल्प, नेमिनाथचउपइ, उपदेशमालाकथानकछप्पय, कल्पनिरुक्त, काव्यशिक्षा ( कविशिक्षा) आदि । पूर्वकथित पार्श्वनाथचरित की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं कि ये चन्द्रगच्छीय रविप्रभसूरि के शिष्य थे ।३८ जब कि मल्लिनाथचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार विजयचन्द्रसूरि रत्नप्रभसूरि के प्रशिष्य और प्रद्युम्नसूरि के शिष्य थे। सद्गत प्राध्यापक श्री गुलाबचंद्र चौधरी ने कालकाचार्यकथा के रचनाकार विनयचन्द्रसूरि को रत्नसिंहसूरि का शिष्य बतलाया है । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि उक्त ग्रन्थों के रचनाकार विनयचन्द्रसूरि नामधारी ग्रन्थकार अलग अलग व्यक्ति हैं।
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