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________________ ६७० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास -- महेन्द्रसूरि [षष्ठम्] वि० सं० १५९९ [एकमात्र प्रतिमा लेख एवं नाणकीय गच्छ का उल्लेख करने वाला अन्तिम साक्ष्य] उक्त तालिका से स्पष्ट है कि यह गच्छ ११वीं शती के उत्तरार्ध में किसी समय अस्तित्त्व में आया और १६वीं शती तक विद्यमान रहा । इस प्रकार लगभग ४०० वर्षों तक यह गच्छ विद्यमान रहा । जैन साहित्य के विशाल भंडार में एक भी ऐसा ग्रन्थ नहीं है, जिसकी रचना का श्रेय इस गच्छ के किसी विद्वान् को दिया जा सके। यह थी इस गच्छ के अनुयायी मुनिजनों की विद्याभ्यास की स्थिति ! फिर भी इस गच्छ के मुनिजन लम्बे समय तक अपने अनुयायी श्रावकों को जिनालयों और जिनप्रतिमाओं के निर्माण की प्रेरणा देते हुए समाज के एक बड़े वर्ग पर अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल रहे। सन्दर्भ सूची :१. सं. १२७२ वर्ष चैत्र वदि ८ शनौ पुस्तिकेयं लिखितेति । श्री नाणकीयगच्छे हरीराह (हृतरोह) वास्तव्य गोसा भगिनी पवइणि श्रीजयदेवोपाध्यायपठनार्थं प्रकरणपुस्तिका दत्ता | Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandaras at Pattan, P. 176, जैनपुस्तक प्रशस्तिसंग्रह (संपा०- मुनि जिनविजय) पृ० ११५ सं० १५९२ वर्षे शाके १४५७ प्रवर्तमाने वैशाख शुक्लपक्षे तृतीया तिथौ रवौ वारे । मृगशिर नक्षत्रे । श्री मेड़तानगरे । राजाधिराज श्रीवीरमदेवराज्ये। श्रीओसवाल ज्ञातीय । श्रीऋषभगोत्रे । को० परिणर्थरे । भा० रयणादे पुत्र को० धरमसी । को० नेतसी को० भीमसी । षीमा हरचंद । को० नेतसी भार्या नायकदे । सूरांणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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