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________________ आगमिक गच्छ कुलवर्धनसूरि [वि० सं० १६४३ - ८३] प्रतिमालेख ७९ [ श्रीचन्द्रचरित [वि० सं० १५४४-७९] वि० सं० १४९४ के कर्ता] Jain Education International विनयमेरु [वि० सं० १५९९] प्रतिमालेख | वरसिंहसूरि प्रतिमालेख 1 संयमरत्नसूरि [वि० सं० १५८०- १६१६ ] प्रतिमालेख [आवश्यक बालावबोधवृत्ति के रचनाकार ] जयरत्नगणि For Private & Personal Use Only देवरत्नगणि वि० सं० १६८१ आगमिकगच्छ के मुनिजनों की उक्त तालिका का आगमिकगच्छ की पूर्वोक्त दोनों शाखाओं ( धंधूकीया शाखा और विडालंबीया शाखा) में से किसी के साथ भी समन्वय स्थापित नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति में यह माना जा सकता है कि आगमिकगच्छ में उक्त शाखाओं के अतिरिक्त भी कुछ मुनिजनों की स्वतंत्र परम्परा विद्यमान थी । इसी प्रकार आगमिकगच्छीय जयतिलकसूरि, मलयचन्द्रसूरि', जिनप्रभसूरि, सिंहदत्तसूरि" आदि की कृतियाँ तो उपलब्ध होती हैं, परन्तु उनके गुरु- परम्परा के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती है। विनयरत्नसूरि [वि० सं० १६७३ माघ सुदी १३ को भगवतीसूत्र के प्रतिलिपिकार] www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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