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________________ ४३४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चित्तं च वाक्यं च वपुश्च यस्य कं न प्रमोदोत्पुलकं करोति ? ॥ ८ ॥ सूरिर्यशोदेव इति प्रसिद्धस्ततोऽभवद्यत्पदपङ्कजस्य । रजोभिरालिङ्कितमौलयोऽपि चित्रं पवित्राः प्रणता भवन्ति ॥ ९ ॥ तत्पाणिपद्मोल्लसितप्रतिष्ठः श्रचिन्द्रसूरिप्रभुशिष्यलेश: । देवेन्द्रसूरि : किमपीति सारोद्धारं चकारोपमितेः कथायाः ॥ १० ॥ श्रीविक्रमादित्यनरेन्द्रकालादष्टानवत्यर्यमसंख्यवर्षे (१२९८) । पुष्यार्कभृत्कार्त्तिककृष्णष्ठ्यां सन्पूर्णतामेष समाससाद ॥ १४ ॥ उपमितिभवप्रपञ्चकथासारोद्धार - संपा० संशोधक पंन्यास मानविजयकान्तिविजय, आचार्यदेव श्रीमद्विजयकमलसूरि-जैन ग्रन्थमाला - ग्रन्थांक १४, पाटण वि० सं० २००६, प्रशस्ति पृ० १९३. १४. गुलाबचन्द्र चौधरी - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २०, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, १९७३ ई० पृ० १२१-१२३. १५. P. Peterson - Fourth Report of Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, Bombay 1894 A.D. No. 1361, P. 123-124. १६. गुलाबचन्द चौधरी, पूर्वोक्त, पृ० २९६ - २९७ १७, वही, पृष्ठ ३५३. १८. Muni Punyavijaya - Catalogue of Palm-leaf Mss in the Shanti Natha Jaina Bhandar, Combay, Part II, Pp. 257-258. अमृतलाल मगनलाल शाह संपा० श्री प्रशस्तिसंग्रह, प्रकाशक : श्री देशविरति धर्माराधक समाज, अहमदाबाद, वि० सं० १९९३, खंड १, पृष्ठ ५, क्रमांक ९ । १९. C. D. Dalal - Ibid, Pp 361-363. २०. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३०-३२. मुनि पुण्यविजय को उक्त प्रशस्ति खंडित रूप में प्राप्त हुई, अतः उन्होंने उसे उसी रूप में प्रकाशित किया है. Catalouge of Palm-leaf Mss in the Jaina Bhandar Combay, Part I, Pp. 112-118. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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