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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
भाग-९ में इस गच्छ की पट्टावली प्रकाशित हुई है । इसी गच्छ में १६वीं शती में पार्श्वचन्द्रसूरि हुए, जिनके नाम पर पार्श्वचन्द्रगच्छ का उदय हुआ, जो वर्तमान में भी अस्तित्ववान है ।
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नागेन्द्रगच्छ- जिस प्रकार चन्द्रकुल बाद में चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ, उसी प्रकार नागेन्द्रकुल भी नागेन्द्रगच्छ के नाम से विख्यात हुआ । पूर्व मध्ययुगीन और मध्ययुगीन गच्छों में इस गच्छ का विशिष्ट स्थान रहा । इस गच्छ में अनेक विद्वान् आचार्य हुए हैं । अणहिलपुरपाटन के संस्थापक वनराज चावड़ा के गुरु शीलगुणसूरि इसी गच्छ के थे । उनके शिष्य देवचन्द्रसूरि की एक प्रतिमा पाटन में विद्यमान है । अकोटा से प्राप्त ईस्वी सन् की सातवीं शताब्दी की दो जिनप्रतिमाओं पर नागेन्द्रकुल का उल्लेख मिलता है । महामात्य वस्तुपाल - तेजपाल के गुरु विजयसेनसूरि इसी गच्छ के थे । इसी कारण उनके द्वारा बनवाये गये मन्दिरों में मूर्तिप्रतिष्ठा उन्हीं के करकमलों से हुई | जिनहर्षगणि द्वारा रचित वस्तुपालचरित (रचनाकाल वि०सं० १४९७ / ईस्वी सन् १४४१ ) से ज्ञात होता है कि विजयसेनसूरि के उपदेश से ही वस्तुपाल - तेजपाल ने संघ यात्रायें कीं और ग्रन्थभंडार स्थापित किये तथा जिनमंदिरों का निर्माण कराया । इनके शिष्य उदयप्रभसूरि ने धर्माभ्युदय - महाकाव्य ( रचनाकाल वि० सं० १२९० / ईस्वी सन् १२३४ ) और उपदेशमालाटीका (रचनाकाल वि० सं० १२९९ / ईस्वी सन् १२४३ ) की रचना की। इनकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु- परम्परा का सुन्दर विवरण दिया है जो इस गच्छ के इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । वासुपूज्यचरित ( रचनाकाल वि० सं० १२९९ / ईस्वी सन् १२४३) के रचयिता वर्धमानसूरि और प्रबन्धचिन्तामणि के रचयिता मेरुतुंगसूरि भी इसी गच्छ के थे । इस गच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेख भी बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं 1 नाणकीयगच्छ श्वेताम्बर चैत्यवासी गच्छों में नाणकीय गच्छ का प्रमुख स्थान है । इसके कई नाम मिलते हैं, जैसे- नाणगच्छ, ज्ञानकीयगच्छ, नाणावालगच्छ आदि । जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है कि अर्बुदमण्डल में स्थित नाणा नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया । शांतिसूरि
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