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________________ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय काव्यालंकारटिप्पण के कर्ता नमिसाधु इसी गच्छ के थे। इस गच्छ से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्य भी पर्याप्त संख्या में प्राप्त हुए हैं, जो वि०सं० १०११ से वि०सं० १५३६ तक के हैं । इस प्रकार इस गच्छ का अस्तित्व प्रायः १६वीं शती के मध्य तक प्रमाणित होता है । चूंकि इसके पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों का अभाव है । अत: यह माना जा सकता है कि उक्त काल के बाद इस गच्छ का अस्तित्व समाप्त हो गया होगा ।। धर्मघोषगच्छ- राजगच्छीय आचार्य शीलभद्रसूरि के एक शिष्य धर्मघोषसूरि अपने समय के अत्यन्त प्रभावक आचार्य थे । नरेशत्रय प्रतिबोधक और दिगम्बर विद्वान् गुणचन्द्र के विजेता के रूप में इनकी ख्याति रही। इनकी प्रशंसा में लिखी गयी अनेक कृतियाँ मिलती हैं, जो इनकी परम्परा में हुए उत्तरकालीन मुनिजनों द्वारा रची गयी हैं। धर्मघोषसूरि के मृत्योपरान्त इनकी शिष्यसन्तति अपने गुरु के नाम पर धर्मघोषगच्छ के नाम से विख्यात हुई। इस गच्छ में यशोभद्रसूरि, रविप्रभसूरि, उदयप्रभसूरि, पृथ्वीचन्द्रसूरि, प्रद्युम्नसूरि, ज्ञानचन्द्रसूरि आदि कई प्रभावक और विद्वान् आचार्य हुए जिन्होंने वि०सं० की १२वीं शती से वि०सं० की १७वीं शती के अन्त तक अपनी साहित्योपासना, तीर्थोद्धार, नूतन जिनालयों के निर्माण की प्रेरणा, जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आदि द्वारा मध्ययुग में श्वेताम्बर श्रमण परम्परा को चिरस्थायित्व प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस गच्छ से सम्बद्ध लगभग २०० अभिलेख मिले हैं जो वि०सं० १३०३ से वि०सं० १६९१ तक के हैं । ये लेख जिनमन्दिरों के स्तम्भादि और तीर्थंकर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं, जो धर्मघोषगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं। नागपुरीयतपागच्छ- वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के एक शिष्य पद्मप्रभसूरि ने नागौर में वि०सं० ११७४ या ११७७ में उग्र तप कर 'नागौरीतपा' विरुद् प्राप्त किया। इस आधार पर उनकी शिष्य संतति 'नागपुरीय तपागच्छ' के नाम से विख्यात हुई मुनि जिनविजय द्वारा संपादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह और श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई द्वारा लिखित जैनगुर्जरकविओ (नवीन संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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