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चन्द्रगच्छ
४०१ (क) ग्रन्थप्रशस्तियां
१. सुरसुंदरीचरियं (सुरसुन्दरीचरित) प्राकृत भाषा में १६ अध्यायों में विभक्त ४००० गाथाओं की यह कृति चन्द्रकुल के आचार्य धनेश्वरसूरि की कृति है। इसमें एक विद्याधर राजकुमार की प्रणयगाथा वर्णित है। कृति के अन्त में प्रशस्ति' के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
उद्योतनसूरि
वर्धमानसूरि
जिनेश्वरसूरि
बुद्धिसागरसूरि
जिनभद्र अपरनाम (वि० सं० १०९५/ईस्वी सन् १०३९ में
धनेश्वरसूरि सुरसुन्दरीचरित के रचनाकार)
२. संवेगरंगशाला - यह कृति चन्द्रगच्छीय जिनचन्द्रसूरि द्वारा वि० सं० ११२५/ ईस्वी सन् १०६९ में रची गयी है। इसमें १५० गाथायें हैं। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा, रचनाकाल आदि का उल्लेख किया है। इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार ने अपने गुरुभ्राता नवावृत्तिकार अभयदेवसूरि के अनुरोध पर इस कृति की रचना की थी। इसमें उल्लिखित गुरु-परम्परा इस प्रकार है:
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उद्योतनसूरि
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