________________
आगमिक गच्छ
-
अपने गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है -
मुनिसागरसूरि 1 उदयधर्मसूरि
मुनिसिंहसूरि 1
मतिसागरसूरि |
उदयधर्मसूरि [ रचनाकार ]
आगमिकगच्छीय उदयधर्मसूरि (द्वितीय) द्वारा रचित धर्मकल्पद्रुम
की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपने गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है.
-
Jain Education International
आनन्दप्रभसूरि T मुनिरत्नसूरि
७३
आनन्दरत्नसूरि
[ धर्मकल्पद्रुम के रचनाकार ]
मुनिसिंहसूरि द्वारा वि० सं० १४९९ कार्तिक सुदी ५ सोमवार को प्रतिष्ठापित भगवान् शान्तिनाथ की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसी प्रकार मुनिसिंहसूरि के शिष्य शीलरत्नसूरि द्वारा वि० सं० १५०६ से वि० सं० १५१२ तक प्रतिष्ठापित ५ प्रतिमायें मिलती हैं । शीलरत्नसूरि के शिष्य आनन्दप्रभसूरि द्वारा वि० सं० १५१३ से वि० सं० १५२७ तक प्रतिष्ठापित ६ प्रतिमायें प्राप्त होती हैं । आनन्दप्रभसूरि के शिष्य मुनिरत्नसूरि द्वारा वि० सं० १५२३ और वि० सं० १५४२ में प्रतिष्ठापित २ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा ही मुनिरत्नसूरि के शिष्य आनन्दरत्नसूरि का भी उल्लेख प्राप्त होता है । उनके द्वारा प्रतिष्ठापित ५ तीर्थंङ्कर प्रतिमायें
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org