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________________ उपकेश गच्छ सिद्धसूरि [वि०सं० १५१५-१५४०] कक्कसूरि [वि०सं० १५३७-१५४९] __ अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर सिद्धाचार्यसंतानीय मुनिजनों की तालिका ऊपर प्रदर्शित की गयी है । साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा भी उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय कुछ मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, इनका विवरण इस प्रकार हैउत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रतिलेखन प्रशस्ति उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि के शिष्य विनयप्रभ उपाध्याय ने वि० सं० १४७९ में अपने गुरु की आज्ञा से स्वपठनार्थ वडगच्छीय आचार्य नेमिचन्द्रसूरि की प्रसिद्ध कृति उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि करायी ।२२ इसके अन्त में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है सिद्धाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि विनयप्रभ उपाध्याय [वि०सं० १४७९/ई. सन् १४२३] में इनके पठनार्थ उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि की गयी] यद्यपि इस प्रशस्ति से उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय दो मुनिजनों के नाम ही ज्ञात होते हैं, फिर भी उपकेशगच्छ की उक्त शाखा के इतिहास की दृष्टि से यह प्रशस्ति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अजापुत्रचौपाई२३ - यह उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय मुनि धर्मरुचि द्वारा मरु-गूर्जर भाषा में वि०सं० १५६१ में रची गयी है। रचना के अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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