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________________ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास संडेरगच्छ - मध्ययुगीन श्वेताम्बर चैत्यवासी गच्छों में संडेरगच्छ का भी प्रमुख स्थान है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है संडेर (वर्तमान सांडेरावराजस्थान) नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया । ईश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। शालिसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि और ईश्वरसूरि ये चार नाम पुन: पुन: इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों को प्राप्त होते रहे । संडेरगच्छीय मुनिजनों द्वारा लिखित ग्रन्थों की प्रशस्तियों एवं उनकी प्रेरणा से लिखाये गये ग्रन्थों की दाता प्रशस्तियों में इस गच्छ के इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री संकलित है । यही बात इस गच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों - जो वि० सं० २०३९ से वि०सं० १७३२ तक के हैं, के बारे में भी कही जा सकती है। सागरदत्तरास (रचनाकाल वि०सं० १५५०), ललितांगचरित, श्रीपालचौपाई, सुमित्रचरित्र आदि के रचनाकार ईश्वरसूरि इसी गच्छ के थे । प्राचीन ग्रन्थों के प्रतिलेखन की पुष्पिकाओं के आधार पर ईस्वी सन् की १८वीं शती तक इस गच्छ का अस्तित्व ज्ञात होता है । Į 1 ५० सरवालगच्छ - पूर्वमध्ययुगीन श्वेताम्बर चैत्यवासी गच्छों में सरवालगच्छ भी एक है । चन्द्रकुल की एक शाखा के रूप में इस गच्छ का उल्लेख प्राप्त होता है । इस गच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १११० से वि० सं० १२८३ तक के कुछ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं। पिण्डनिर्युक्तिवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १९६० / ईस्वी सन् १९०४) के रचयिता वीरगणि अपरनाम समुद्रघोषसूरि इसी गच्छ के थे । इस गच्छ के प्रवर्तन कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । सरवाल जैनों की कोई जाति थी अथवा किसी स्थान का नाम था जहाँ से यह गच्छ अस्तित्व में आया, यह अन्वेषणीय है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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