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________________ जीरापल्लीगच्छ ५२३ रचनाकार ने केवल अपने गुरु और रचनाकाल तथा गच्छ आदि का ही उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : संवत पनर चोराण सार, मागसर वदि सातमि गुरुवार । पूष्य नक्षत्र हूंतो सिध जोग, कयवन्नानी कथानो भोग ॥ श्रीजीराउलिगच्छ गुरु जयवंत, श्री श्रीरामकलशसूरि गुणवंत । वाचक देवसून्दर पभणंति, भणइ गुणइ ते सूख लहंति ॥ इनके द्वारा रची गई एक अन्य कृति भी मिलती है जिसका नाम है आषाढ़भूतिसज्झाय (रचनाकाल वि० सं० १५८७)। वि० सं० १६०२ में लिखी गयी तपागच्छीयश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति की प्रतिलिपि की प्रशस्ति में भी इस गच्छ का उल्लेख है: इति श्री तपग० श्राद्ध प्रतिक्रमण ......... वृत्तौ शेषाधिकारः पंचमः । समाप्ता चेयमर्थदीपिकानाम्नी श्राद्धप्रतिक्रमणटीका । ग्रन्थाग्रन्थ ६६४४ ॥ श्री सं० १६०२ श्रावण सुदि ५ रवौ श्रीजीराउलगच्छे लिखितं कीकी जाउरनगरे श्रीविजयहर्षगणि शिष्य रंगविजयनी प्रति भंडारी मूकी । ___कयवन्नाचौपाई के रचनाकार देवसुन्दरसूरि के गुरु रामकलशसूरि किसके शिष्य थे । अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित सागरचन्द्रसूरि, देवरत्नसूरि आदि से उनका क्या सम्बन्ध था, प्रमाणों के अभाव में यह ज्ञात नहीं होता। ठीक यही बात श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की वि० सं० १६०२ में प्रतिलिपि करने वाले जीरापल्लीगच्छीय रंगविजय और उनके गुरु विजयहर्षगणि के बारे में कही जा सकती है, फिर भी उक्त साहित्यिक साक्ष्यों से वि० सम्वत् की १७वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक इस गच्छ का स्वतन्त्र अस्तित्त्व सिद्ध होता है। इसके बाद इस गच्छ से सम्बद्ध कोई साक्ष्य न मिलने से यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि इस समय तक इस गच्छ के अनुयायी श्रमण किन्ही प्रभावशाली गच्छों विशेषकर तपागच्छ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003614
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages714
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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