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___ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास कीर्तिर्दिक्करिकान्तदन्तमुशल प्रोद्भूतलास्यक्रमम्, क्वापि क्वापि हिमाद्रि मु-मही [मुद्रितमही] सोत्प्रास [सोऽत्रास] हास स्थितिम् क्वाप्यैरावण नागराजनजित स्पर्धानुबद्धोदस्म नुव (बं) धोद्धरं, भ्र[1]मन्ति भुवनत्रयम् त्रिपथगेवाद्यापि न श्राम्यति ।
सं० ११०० भाद्रवदि २ चन्द्रे कल्याणक दि [ने] प्रशस्तिरियं साधु सर्व्वदेवेनोत्कीर्णेति ॥
यही इस गच्छ से सम्बद्ध एकमात्र उपलब्ध साक्ष्य है। जैसा कि ऊपर हम देख चुके है यह लेख ॐ नमः सिद्धेभ्यः से प्रारम्भ होता है। इसके द्वितीय और तृतीय पंक्ति में निवृत्ति अन्वय (कुल) से उद्भूत काम्यकगच्छ में हुए विष्णुसूरि के पट्ट पर आसीन महेश्वरसूरि का उल्लेख है जो वि० सं० ११०० में स्वर्गवासी हुए । लेख की पंचम पंक्ति से ज्ञात होता है कि इसे श्रीपथ के राजा या अधिपति विजय के राज्यकाल में उत्कीर्ण कराया गया। लेख की अंतिम पंक्ति में इसे उत्कीर्ण कराने वाले साधु सर्वदेव का नाम मिलता है जो महेश्वरसूरि के शिष्य रहे होंगे।
निर्वृतिकुल
विष्णुसूरि
महेश्वरसूरि [वि० सं० ११०० में स्वर्गस्थ]
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