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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पट्टधर आचार्यों में केवल अभयसिंहसूरि का ही वि० सं० १४२१ के एक प्रतिमा लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। शेष ७ आचार्यों के बारे में मात्र पट्टावलियों से ही न्यूनाधिक सूचनायें प्राप्त होती हैं, अन्य साक्ष्यों से नहीं । लगभग २०० वर्षों की अवधि में किसी गच्छ में ८ पट्टधर आचार्यों का होना असम्भव नहीं लगता, अत: आगमिक गच्छ के विभाजन के पूर्व इन पट्टावलियों की सूचना को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है।
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसूरि और सोमतलिकसूरि की शिष्यसन्तति आगे चलकर क्रमशः धन्धूकीयाशाखा और विडालंबीयाशाखा के नाम से जानी गयी, यह बात निम्न प्रदर्शित तालिका से स्पष्ट होती है :
शीलगुणसूरि
देवभद्रसूरि
धर्मघोषसूरि
यशोभद्रसूरि
सर्वानन्दसूरि
अभयदेवसूरि
वज्रसेनसूरि
जिनचन्द्रसूरि
विजयसिंहसूरि
हेमचंद्रसूरि
रत्नाकरसूरि
अभयसिंहसूरि
गुणसमुद्रसूरि
अमरसिंहसूरि
सोमतिलकसूरि
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