Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेष कपिलादिषु।
युक्तिमद्वचनं यस्य, तस्य कार्य: परिग्रहः॥ मेरा वीर जिनेन्द्र में पक्षपात नहीं है, एवं कपिलादि में द्वेष नहीं है, किन्तु जिसका वचन युक्ति युक्त, तर्क संगत, परस्पर अविरोध, इह लोक और परलोक का हितकारी है, उन्हीं का वचन ग्रहण करने योग्य है, अन्य का नहीं।
प्रश्न होता है कि ऐसे महान् पुरुषों की वन्दना क्यों करनी चाहिए? इसका उत्तर यह है कि उनके गुणों की उपलब्धि के लिए, उनके गुण स्मरण के लिए, कृतज्ञता ज्ञापन करने के लिए। कहा भी है:अभिमतफलसिद्धेरभ्युपायः
सुबोधः, स च भवति सुशास्त्रात् तस्य चोत्पत्तिराप्तात्। इति भवति स पूज्यस्तत्प्रासादात्बुद्धैः,
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति॥ इष्टफल की सिद्धि का उपाय सम्यक्ज्ञान है। सो सम्यग्ज्ञान यथार्थ आगम से होता है। उस आगम की उत्पत्ति आप्त (देव) से है इसलिए वह आप्त (देव) पूज्यनीय है जिसके प्रसाद से तीव्र बुद्धि होती है। निश्चय से साधु लोग
अपने ऊपर किये गये उपकार को नहीं भूलते हैं। - श्रेयोमार्गस्य संसिद्धिः प्रसादात्परमेष्ठिनः। .. इत्याहुस्तद्गुणस्तोत्रं शास्त्रादौ मुनि पुंगवाः॥ .. मोक्षमार्ग की सिद्धि परमेष्ठी भगवान के प्रसाद से होती है, इसलिये मुनियों
में मुख्य, शास्त्र के आदि में उनके गुणों की स्तुति करते हैं। ..... स्तुति करने का मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक कारण पूज्यपाद स्वामी ने कहा है :
अज्ञानोपास्तिरज्ञान ज्ञानं ज्ञानिसमाश्रयः । ददाति यस्तु यस्यास्ति सुप्रसिद्धमिदं वचः॥(23)
___ इष्टोपदेशः अपने आत्मा से भिन्न अरहन्त, सिद्ध, परमात्मा की उपासना, आराधना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org