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aafarara बड़े माईकी जांच अर्थात्
सूर्यप्रकाश-परीक्षा
प्रास्ताविक निवेदन
'जकल 'चर्चासागर' प्रन्थ जैन समाजमें सर्वत्र आजकल चर्चाका विषय बना हुआ है और सब ओरसे उसका भारी विरोध हो रहा है । ऐसे ग्रन्थके इस विरोधको देखकर मेगे प्रसन्नताका होना स्वाभाविक है; क्योंकि आजसे कोई अठारह वर्ष पहले मैंने अन्ध श्रद्धाकी नींदमें पड़े हुए जैन समाजको जगाने और उसमें विचारस्वातन्त्र्य तथा तुलनात्मक पद्धति से ग्रन्थों के अध्ययनको उत्तेजन देनेके लिये प्रन्थोंकी परीक्षाके उनके विषय में गहरी जाँचपूर्वक स्पष्ट घोषणा करने के - जिस भारी कामको प्रारम्भ किया था और जो कई साल तक जारी रहा वह आज कुछ विशेष रूपले फलित होता हुआ नज़र आता है । उस वक्त आम तौर पर विद्वानों तक इतना मनोबल और साहस नहीं था कि वे जैनको मुहर लगे हुए और जैन मन्दिरोंके शास्त्र भंडारोंमें विराजित किसी भी प्रन्थ के विरोध प्रकट रूपसे कोई शब्द कह सके। और तो क्या, मेरे परीक्षालेखों को पढ़कर और उन परसे यह जानकर भी कि ये प्रन्थ धूर्तों के रचे हुए, जालो तथा बनावटी हैं बहुतोंको उन पर अपनी स्पष्ट सम्मति देनेकी हिम्मत तक नहीं हुई
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