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है जो मूलमें नहीं है। इसी तरह की इस फलवर्णनके प्रकरण मे आगे पोछे बहुतसी बातें अर्थ करते समय छोड़ दी गई और बहुतसी बढ़ाई गई हैं। जैसे विधवा होने के कारणोंमें "पुनर्वि वाह" और "वैधव्यदोक्षानाश" आदिको बातें बढ़ाई गई हैं और कितना ही वर्णन मूलले बाहर दिया है। (पृष्ठ २७४ - २७६) (२६) पृष्ठ ३८० पर श्लोक नं० १९० के अर्थ में ये बातें बढ़ाई गई हैं:
" वर्तमान में वर्णव्यवस्थालोप, विधवाविवाह स्पर्शास्पर्शलोप समानहक्क आदि समस्त धर्मविरुद्ध नीतिविरुद्ध मर्यादाविरुद्ध बातोंको धर्मनीति और कर्तव्य बतलाया जा रहा है । यह सब राजा और राजाकी ऐसी ही कुशिक्षाका फल है। यह बात सच है कि यथा राजा तथा प्रजा ।"
(२७) पृ० ३८४ पर लोक नं० २११ के अर्थमें यह बात बढ़ाई गई है, जो उक्त श्लोक में नहीं है :
"अगणित दोपको से दीपावली (दिवाली) को प्रकट किया। उसी दिवस से यह उत्सव दीपावली के नाम से दिवाली आजतक प्रचलित है ।"
( २८ ) पृ० ३८८ पर श्लोक नं० २३३ के अर्थमै राजा श्रेणिक द्वारा पावापुर में स्थापित वीर जिनालयको प्रतिष्ठा के साथ में "अतिशय धूमधाम से" ये शब्द जोड़े गये हैं और साथ ही यह बात बिलकुल अपनी तरफ़से कल्पित करके जोड़ी गई है कि राजाश्रेणिकने
GOVIND
"उस जिनालय में श्री वीरप्रभुके स्मरणार्थ वीरप्रभुकी चरणपादुका स्थापित की ।"
(२९) पृ० ८० पर कुन्दकुन्दको मन्थरचना का उल्लेख करते हुए जो श्लोक नं० ३५२ दिया है उसका अनुवादकजी द्वारा निर्मित अर्थ अर्थकी वृद्धि, हानि तथा विपरीतता तीनोंको