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ग्रंथके सम्बन
नुसार लेख के इन परीक्षालेखोंकी यथेष्ट जाँच करते हुए इस में अपनी स्पष्ट तथा खुली सम्मति प्रकट करने की कृपा करें। हुँदि परीक्षा से - जिसपर मुझे विश्वास है—उन्हें भो यह ग्रंथ ऐसा ही सदोष, निःसार, अनर्थकारी तथा जैनशासनको मूलेन करनेवाला जँचे तो समाजहितको दृि उनका यह मुख्य कर्तव्य होना चाहिये कि वे इसके विरुद्ध अपनी जोरदार आवाज़ उठाएँ और समाजमें इसके विरोधको उतेजित करें, जिससे धूर्तोकी की हुई जैनशासनकी यह मलिनता दूर हो सके। इस समय उनका मौन रहना ठीक नहीं होगा. वह ऐसे अनेक अनर्थकारो ग्रंथोंको जन्म देगा अथवा उन्हें प्रकाशित कराने में सहायक बनेगा और उससे समाजकी बहुतसी शक्तिका दुरुपयोग होगा । यह ग्रंथ 'चर्चासागर' का बड़ा भाई है, जैसा कि मैंने ऊपर प्रकट किया है, इसकी गोमु खव्याघ्रता उससे बढ़ी चढ़ी है, जिसके कारण समाजको इससे अधिक हानि पहुँने की संभावना है ऐसे ही ग्रंथोंकी बदौलत हम कितने ही संस्कार
बड़े
कीय हो रहे है जिन्हें बड़े प्रस्तार होगा। अतः इसका विरोध एवं बहिष्कार वर्षासामने भी होना चाहिये जो सज्जन इस सम्बन्धर्मे अपनी सम्मति मेरे पास भेजने की कृपा करेंगे अथवा इसके विरोधी प्रस्तावोंको जैनमित्र, जैनरंगत या वीर पत्र में प्रकाशित कराएंगे उन सबका मैं विशेष आभारी हूँगा । इत्यलम् ॥
सरसावा जिल्ला सहारनपुर ता० ६-१-१९३३
} जुगलकिशोर मुख्तार