Book Title: Suryapraksh Pariksha
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 164
________________ (२३) पृष्ठ २११ पर श्लोक नं० १४२ के अर्थ में यह बात अपनी तरफ से मिलाई गई है, मूल में नहीं है "अपने घरसे उत्तमोत्तम भगवान्के पूजनको सामग्री तथा अभिषेककी सामग्रो ( इक्षुरस-दूध-दही-वृत-सर्वोषधि-- शर्करा फल-फूल-केशर-कपूर-दीपक आदि ) ले जावे।" (२४) पृष्ठ २६७ पर सम्मेदशिखर के आनन्दकूटसे मुक्ति जानेवालोंको संख्या और उस कूटको बन्दनाका फल बतलाने के अनन्तर जो बात मूलके नाम पर श्लोकोंके अर्थ में अपनी तरफसे बढ़ाई गई है वह इस प्रकार है: "सनत्कुमार चक्रवर्तीने चतुर्विध संघसहित यात्रा की। यह संघ सबसे भारी निकाला गया था। लाखोंको संख्यामें यात्री थे। सबकीवर्या संघमें होती थी।" इसी तरह आगे अविचलकूट आदिके वर्णनमें भी चतुर्विधसंघसहित वन्दना करनेवाले राजाओं के नामादिकका उल्लख मूलवाक्योंके अर्थों में बढ़ाया गया है, संघमें हज़ारों मनियों के होनेका भी कहीं कहीं उल्लेख किया गया है और किसी किसी कूटका माहात्म्यविशेष भी अपनी तरफसे जोड़ा गया है, जैसे प्रभासकूटके वर्णनमें (पृष्ठ २६८ पर ) लिखा है"इस कूटकी रज लगानेसे कुष्ठ रोग दूर होता है । विशेष एक बात यह भी है कि बोस कूटोंको यात्राके समान इसका फल है।" इस तरहको बहुतसी बातें इस सम्मेदशिखर प्रकरणमें चुपकेसे अर्थमें शामिल को गई हैं और इस तरह उन्हें मूलकी प्रकट किया गया है। (२५) पृष्ठ ३१८ पर तोत्रमोही होने के कारणों मे होंग, सज्जी, नमक, तेल आदि कई चीज़ोंके खरीदने बेचने (व्यापार) को बातको छोड़ दिया है । और "मशीनोंके द्वारा महान् हिंसक होनेवाले व्यापार" आदिकी बातोंको बढ़ाया गया

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