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[ ९९ ] सकती। इस समय भी पुरुषोंको अपेक्षा स्त्रियां अधिक शोल. सम्पन्न तथा अधिक पवित्र जीवन बिताने वाली हैं और जो पतित भी होती हैं वे प्रायः पुरुषोंके द्वारा हो पतनके मार्गमें लगाई जाती हैं। फिर भी पुरुषोंके शोलविहीन होनेकी बाबत ऐसा कुछ नहीं कहा गया, यह आश्चर्य है ! और वह ग्रंथकार के पूर्ण अविचार तथा उसके किसी स्वार्थ को सूचित करता है। ११ शद्र-जलादिके त्यागका अजीब विधान !
इस ग्रंथमें कुछ स्थानों पर शूद्र-स्पर्शित जल-घृतादिको त्याज्य बतलाते हुए लिखा हैः
"निन्धं स्यात्सर्वमासेषु न्यादपानादिकं खलु । शूद्रकरण संस्पृश्यं सदाचारविनाशकम् ॥१३३॥ मद्यमांसमधूनां यदशनादोषो जायते । वै स्यात्तद्धस्तसंपर्क-वस्तुमक्षणतो बुधाः ॥१३४॥ ये पुनः शूद्रहस्तस्य भाद्रमासे व्रतेषु च । चूर्णोदकाज्यं खादन्ति ते नरास्तत्समा मताः ॥१३॥" "शूद्रस्पृश्यं जलं चूर्ण घृतं ग्राह्यं व्रताप्तये । नैव गृह्णन्ति ये मूर्खास्तत्समास्ते बुधर्मताः ॥१६०॥"
-पृ० ३६, ३७, २१४ अर्थात्-शूद्रका हाथ लगा हुआ भोजन-पानादिक निश्चयसे सदाचारका विनाशक है, सभी महीनोंमें निन्ध है (खाने के योग्य नहीं)। हे बन्धुजनों ! जो दोष मद्य-मांस मधुके खानेसे लगता है वही शूद्रका हाथ लगी वस्तु के खाने में