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[१०६] बोधि-समाधिको याचना कराना और उन्हें थोड़ी सी बुद्धिका धारक प्रकट कराना उनको तथा अर्हत्पदकी मिट्टी खराब करना नहीं तो और क्या है ? अर्हन्तोंसे तो दूसरे लोग 'दितु समाहिं च मे वोहिं' जैसे शब्दोंके द्वारा बोधिसमाधिको प्रार्थना किया करते हैं; वे यदि खुद ही बोधिसमाधिसे विहीन हो तो उनकी उपासनासे इस विषयमें लाभ भी क्या उठाया जा सकता है ? और उनकी अहन्तता अथवा आप्तताका महत्व भी क्या हो सकता है ? कुछभी नहीं।
(ग) दिगम्बर तेरहपंथियोंसे भगवान्को झड़पके समय निम्न वाक्य भी भगवान्के मुखसे कहलाये गये हैं:
"अधुना पंचमे काले नो सन्ति भो बुधोत्तमाः । तीर्थकराः सुरैः पूज्याः केवलज्ञानमडिताः ॥८॥ "प्रत्यक्षं केवली नास्ति अतस्तत्स्थापना मता । स्थापनायां मताः सर्वाः क्रिया: वै स्नपनादिकाः॥१०३॥ "कालेऽस्मिंश्चलचित्तकरे मिथ्यात्वपूरिते । नैव दृश्यन्ते योगीन्द्रा महाव्रतधरा वराः॥११३॥
इनके द्वारा भगवान् महावीर कहते हैं-'हे उत्तम बुध. जनों! इस वक्त (अधुना)पंचमकालमें निश्चयसे केवलशानमंडित
और देवोंसे पूज्य तीर्थङ्कर नहीं हैं । प्रत्यक्षमें कोई केवली नहीं है, इसलिये केवलीको स्थापना मानी गई है और स्थापनामें निश्चयसे अभिषेकादि सारी क्रियाएं स्वीकार की गई हैं। इस चलचित्तकारी और मिथ्यात्वसे पूरित (पंचम) कालमें महाव्रतो को धरने वाले श्रेष्ठ योगीन्द्र दिखलाई ही नहीं देते।'
___ भगवान् महावोर चतुर्थकालमें हुए हैं, वे खुद तोर्थङ्कर थे, केवली थे और उनके समयमें बहुतसे महावतधारी गौतमा