________________
[- ३५ ]
समय वहाँ चक्री आया, उसने कुन्दकुन्दको हाथमें लेकर आश्चर्यके साथ कुछ चिन्तन किया, फिर स्वामोसे पूछा, उन्होंने कहा कि जिसकी बाबत पहले कहा गया था यह वही भारतज मुनि है, यह सुनकर चक्री सन्तुष्ट हुआ और उसने मुनिको इस भय से कि कहीं तुच्छकाय होने के कारण उसे (५०० धनुष ऊंचे पर्वताकार मनुष्योंके बीच में) कुछ हानि न पहुँच जाय स्वामी के सामने स्थापित कर दिया । कुन्दकुन्द मुनिने सीमंधर स्वामीकी दिव्यवाणी सुनकर आनन्द प्राप्त किया और फिर स्वामोसे एक लम्बासा प्रश्न करके वे मानस्थ हो रहेप्रश्न में मिथ्यात्वकी वृद्धि, सर्वत्र जिनालय के न होने, श्वेताम्बर मतके प्रचार तथा जेनशास्त्रोंके न दिखलाई देनेका भो उल्लेख किया गया है और उसका कारण पूछा गया है - उत्तरमें सीमंधर स्वामीकी वाणी खिरी, जिसमें बलभद्रके जीव द्वारा मिथ्या मनकी उत्पत्ति जैसी अन्य बातोंके अतिरिक्त भद्रबाहु के पश्चात् श्वेताम्बर मत उत्पन्न हुआ बतलाया गया, श्वेताम्बरों पर 'कापट्यमप्रता' का आरोप किया गया, दुष्ट लोगों द्वारा जिनागम शास्त्रोंक समुद्र में डुबोए जाने के कारण जैनशास्त्रोंका न दिखाई देना कहा गया और साथही यहभी कहा गया कि इस समय जैनपुर ( मूडबिद्रो) में धरसेन यतीन्द्रके रचे हुए धवलादिक शास्त्र मौजूद हैं। उत्तरको सुनकर कुन्दकुन्दका चित्त संदेहरहित होगया । इसके बाद स्वामीकी ध्वनिमें यह बात प्रकट हुई कि कुन्दकुन्द योगीन्द्रको सर्वसिद्धान्त सूचक शास्त्र लिखाकर दिये जाने चाहियें और उन्हें ग्रंथोंके साथ भेजना चाहिये । ध्वनिकी समाप्ति पर कुन्दकुन्द सभास्थान में ही ग्रंथोंको पढ़नेके लिये बैठ गये (!) और उन्होंने वहां सर्वसिद्धान्त-सूत्रक ग्रंथ पढ़े । विदेह क्षेत्रमें आहारको योग्यता न मिलने से - वहां आहारके समय दिन और भारतमें उस वक