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होने वाले कुन्दकुन्दके वृत्तान्तको सुननेकी प्रेरणा करते हुए कहने लगे
'एक दिन उन कुन्दकुन्द मुनीश्वरने नेमिजिनेन्द्रकी यात्राके लिये गमन किया, उनके साथ बहुतसे भव्य पुरुष स्त्रियोसहित चले-मुनिभो चले, आर्यिकाएँभी चलीं, उस चतुर्विध संघमें ७०० मुनि थे, १३०० आर्यिकाएं थीं, ३५ हज़ार धावक थे और ७० हज़ार श्राविकाएं थीं। इतने बड़े संघक साथ कुन्दकुन्द मुनि गिरनार पर्वतके बनमें पहुँचे और सबने मार्गश्रम-निवारणार्थ अपने अपने योग्य स्थान पर डेरा किया। अब दूसरो कथा सुनो-उसी वनमें नेमि जिनकी यात्राके लिये श्वेताम्बरोंका महान् संघभी आ पहुँचा, जिसमें नाना. तिशयसम्पन्न २४० यति थे-जिन्हें नामके यति, रसोंसे अपना शरीर पुष्ट करने वाले तथा मदोद्धत बतलाया गया
और उनके आज्ञापालक दो लाख मनुष्य (श्रावकजन) और थे । पहले आये हुए संघने कुन्दकुन्दको आगे कर जिस समय यात्रा के लिये प्रस्थान किया उस वक्त श्वेताम्बरोंने-जिन्हें 'खल' तक कहा गया-आकर उसे रोका और कहाकि पहले हम यात्रा करेंगे, क्योंकि हमारा मत सबसे पहला है और हम सब
* इससे मालूम होता है कि दोनो संघोंके मुनि-आर्यिका श्रावक-श्राविकाओकी संख्या तीन लाख सात हजार तीनसौ चालीस थी। तब उनके साथ ५० हजारके करीब गाड़ियां और इतनेही गाड़ीवान ( हांकने वाले ) तथा ५० हजारके करीब दूसरे नौकर चाकर और एक लाखसे ऊपर बैल-घोड़े-ऊंट वगैरह सवारी तथा बारबरीके जानवरभी होंगे। इतने बड़े जनादि समूहका एकही वक्तमें गिरनार पर्वतको तलहटीके एक वनमे समाजाना ग्रंथकारको शायद कुछ अस्वाभाविक प्रतीत नहीं हुआ !!