________________
1 ३६ जैसे अंधोंके नाममी दिये हैं और फिर लिखा है कि उन्होंने सर्व प्राणियोंके हितार्थ ग्रंथों में विस्तार के साथ पूजाविधि तथा स्नानविधिका निर्माण किया है।"
यह पिछला वाक्य इस प्रकार हैपूजाविधिस्तथास्नानविधिर्विस्तारतः खलु । ग्रंथेषु निर्मितस्तेन सर्वभूतहितातये ॥३५॥
इसके अनन्तर मानो भगवान्को फिर कुछ होश आई और वे भूत वर्णनाको छोड़ कर पुनः भविष्य कथनके रूपमें कहने लगे-“हे चेलनाकान्त (श्रेणिक) ! इत्यादि संपूर्ण ग्रंथों को वह धर्मबुद्धि मुनि जिनधर्मको प्रभावनाके लिये करेगा (रचेगा), अपनी सिद्धि तथा भव्योंके सम्बोधनार्थ हे राजन् ! वह यतीन्द्र पृथ्वी पर विहार करेगा और भव्योंको सम्बोधता हुआ तथा धर्मको बढ़ाता हुआ मिथ्यान्धकारका नाश करेगा।" यथा
इत्यादिसकलान् ग्रंथान् चेलकान्तसुधर्मभाक् । करिष्यति प्रभावार्थ जिनधर्मस्य धर्मधीः ॥३५२॥ स यतीन्द्रः स्वसिद्धयर्थ विहारं च करिष्यति । तदावनौ नराधीश भव्यबोधार्थमंजसा ॥३५३॥ भव्यान् सम्बोधयन् धर्म वर्द्धयन् वचनोत्करैः । मिध्यान्धतमसं सैव हनिष्यति भवाब्धिदम् ॥३५४॥
परन्नु यह होश कुछ अधिक समय तक स्थिर नहीं रह सको, उक्त कथनके अनन्तरही पलट गई अथवा यो कहिये कि भगवान्के शानका क्षण भरमें कुछ ऐसा विपर्यास (उलटफेर) होगया कि उसमें भविष्यकालीन घटनाएँ भूतकालीनके रूपमें झलकने लगी और इसलिये भगवान् गिरनार पर्वत पर