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सात दिन तक वे भूखे रहे ? इसका ग्रंथ परसे कुछभी समाधान नहीं होता ! इसके सिवाय, यदि यह मान लिया जाय कि भारतको रात्रि दिनकी चर्याके हिसाब से ही कुन्दकुन्द बँधे हुए थे तो उन्हें उस वक्त चक्रवर्तीसे वार्तालाप भी नहीं करना चाहिये था और न वहा दिनके समय सीमंधर स्वामी तथा उनके गणधरोंसे ही प्रश्नादिक करने चाहियें थे; क्योंकि उस समय भारतमें रात्रि थी और रात्रिको मुनिजन बोलते नहीं हैं - खुद कुन्दकुन्दभी इसीलिये उन देवोंसे नहीं बोले थे जो रात्रि के समय उन्हें लेने के लिये गये थे और जिसका उल्लेख प्रथम "ब्रूयुर्नैव रात्रौ च" इत्यादि वाक्यके द्वारा किया गया है । फिर कुन्दकुन्द ने अपने उस रात्रि में मोनके नियमको वहाँ जाकर क्यों भुला दिया ? यह देशकालानुसार वर्तन नहीं था तो और क्या था ? फिर भोजनने ही कोनसी ख़ता को थी ? यदि वहां उन्हें भोजन कराना हो ग्रंथकारको दृष्ट नहीं था तो अच्छा होता यदि कुन्दकुन्दके द्वारा ऐसा कुछ उत्तर दिला दिया जाता कि 'भारतीयों द्वारा दिया हुआ भारतका अन्नजल ही मेरे लिये प्राह्य है ।' परन्तु ग्रंथकारको इतनी समझ होती तब न ! उसने तो अपनी मूर्खतावश कुन्दकुन्द जैसे महान् आचार्य को भी अच्छा ख़ासा मूर्ख बना डाला है !! ८ आगमका अद्भुत विधान
ग्रंथ में एक स्थान पर आगमका जो विधान दिया गया है वह इस प्रकार है :
जिनबिम्बं नराः ये हि दृष्ट्वा कुर्वन्ति भोजनम् । ते मता ह्यागमे मर्त्याः पशुतल्याश्च तद्ऋते ॥ पृ० २०६ ।। अर्थात् आगम में वे लोग हो निश्चयसे मनुष्य माने