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संघ सम्मेदशिखरकी यात्राको कुछ वर्ष पहले निकला था वह प्रायः इस प्रथमें दी हुई बड़ी यात्राविधिको सामने रखकर ही निकला था और उसके द्वारा संघपति सेठजीको अगले ही जन्म मैं मुक्तिकी प्राप्तिका सर्टिफिकेट मिल गया है । आश्चर्य नहीं जो भावी निश्चित सिद्धों (तीर्थङ्करों ) को तरह उनकी अभी से पूजा प्रारम्भ होजाय !! अब वे स्वच्छन्द हैं, चाहे जो करें !!!
६ सम्यग्दर्शनका विचित्र लक्षण |
इस प्रथमें, तेरहपंथियोंसे भगवान की झड़पके समय, सम्यग्दर्शन अथवा सम्यग्दृष्टिका जो लक्षण दिया है वह इस प्रकार है:
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सम्यग्दृष्टेरिदं लक्ष्म यदुक्तं ग्रन्थकारकैः ।
वाक्यं तदेव मान्यं स्यात् ग्रन्थवाक्यं न लंघयेत् ॥ ६१५||
अर्थात्-थकाने ( ग्रंथोंमें) जो भी वाक्य कहा है उसे ही मान्य करना और ग्रंथोके किसी वाक्यका उल्लंघन नहीं करना, सम्यग्दर्शनका लक्षण है-जिसकी ऐसी मान्यता अथवा श्रद्धा हो वह सम्यग्दृष्टि है ।
जिन पाठकोंने जैनधर्मके प्राचीन ग्रंथोंका अध्ययन किया है, अथवा कमसे कम तत्त्वार्थसूत्र, रत्नकरण्ड श्रावकाचार
* " इत्यादि शुभविधिना सो वन्दितः सन् द्वितीये हि भवे तं पुरुषं मोक्षसुखं दातु क्षमः । नात्र संशयः ।” इस वाक्य के अनुसार । ↑ 'सम्यग्दृष्टि' शब्द सम्यग्दर्शन और सम्यग्दर्शनवान् दोनोंके अर्थमे आता है । इसीसे मूलमें प्रयुक्त हुए इस शब्दका अर्थ यहाँ उभय रूपसे किया गया है।