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[३८ 1 में वृद्ध हैं। इस पर कुन्दकुन्दने 'वधुपाल' नामके एक श्रावकको बुला कर और उसे भले प्रकार शिक्षा देकर श्वेताम्बरों के पास भेजा, जिसने कुछ समझाने के अनन्तर श्वेताम्बरोंसे कह दिया कि यदि तुम्हारी वादको शक्ति होतोशोघ्र आकर वाद करलो जो संघ जीतेगा वही पहले तीर्थयात्रा करेगा। इस तरह श्वेताम्बरोंको क्षुभित कर उसने सब वृत्तान्त आकर गुरु से कह दिया, तब कुन्दकुन्द सर्व संघसहित गिरनार पर्वतके समीप हो ठहर गये । वहीं पर श्वेताम्बरो लोग वादके लिये आ गये । श्वेताम्बरोंके मुख्याचार्य शुक्लाचार्यके साथ कुन्दकुन्दका वाद हुआ । शुक्लाचार्य जब युक्तिवादमें हार गया तब उसे कोप हो आया और उसने अपने मंत्रयल से कुन्दकुन्दके कमण्डलुमें मछलियाँ बनादी, इशारा पाकर उनके एक शिष्यने कुन्दकुन्द से पूछा 'आपके कमण्डलुमें क्या है ?', कुन्दकुन्दने कहा अपने गुरुजीसे हो पूछो वे आदि मतके धारक हैं, उसने तब गुरुसे पूछा और गुरुने मदमें आकर लोगोंको सम्बोधन करते हुए कहा 'देखो, यह मुनि जीव भक्षक है' (क्योंकि इसके कमण्डलुमें मछलियां है)। यह सुनकर कुन्दकुन्दने सीमंधर स्वामीको नमस्कार करके कमंडलु को ओधा कर दिया और उसमें से पद्मपुष्पों का समूह नीचे गिरपड़ा,जिसकी सुगन्धसे उसी क्षण वहां भौहरे आगये। इस अतिशयको देखकर संघके सब लोग बड़े प्रसन्न हुए, लोगोंने 'पभनन्दी' नामसे कुन्दकुन्दको स्तुति को आर श्वेताम्बरोंके चेहरे मलिन हो गये। उसी वक्तसे कुन्दकुन्द मुनि 'पानन्दी नामसे प्रसिद्ध हुए।'
_ 'फिर शुक्लाचार्य और कुन्दकुन्दका और भी वाद (मंत्रवाद) हुआ, मन्त्रबलसे शुक्लाचार्य ने कुन्दकुन्दको पिच्छिको आकाशमें रखदिया और कुन्दकुन्दने शुक्लाचार्यके शरीरसे वनों को उतार कर उसके पास रख दिया; इस तरह दोनोंका महान