________________
[ २] तक.) को पढ़ते हुए प्रायः * ऐसा मालूम होता है मानो भगवान् मेक ठीक भविष्य का वर्णन कर रहे हैं । उन्हों ने बतलाया है कि-'वार ( बाय ? ) नगर में 'कुन्द ' सेठ और 'कुन्दा' सेठानी से 'कुन्दकुन्द' नाम का पुत्र पैदा होगा, जो कुमार अवस्था में ही जिनचन्द्र मुनि के पास से जिनदोक्षा लेकर मुनि हो जायगा । एक दिन वे कुन्दकुन्द मुनि धरणीभूषण पर्वत पर विदेहक्षेत्रस्थ सीमंधर स्वामी का ध्यान लगाएँगे, उस वक्त सीमंधर स्वामी अपने समवसरण में उन्हें 'धर्मवृद्धि' देंगे, उसे सुनकर वहां पर बैठे हुए चक्रवर्ती आदि गजा विस्मय को प्राप्त हुए (प्रायुः १७०)! वे भगवान सीमंधर स्वामी से पूछेगे कि यहां कोई आया नहीं, तब आप ने किस को धर्मवृद्धि दी, उत्तर में स्वामी उन्हें भरतक्षेत्र की वर्तमान स्थिति का कुछ वर्णन करते हुए तत्रस्थ कुन्दकुन्द मुनि का और उनके उस ध्यान का परिचय देंगे, उसे सुनकर चक्रवर्ती आदि महान् हर्ष को प्राप्त हुए (संप्रायुः १८४) और सब देवेन्द्रो, राजाओं तथा यतीश्वरों ने हाथ जोड़ कर भारत के उस ऋषि को नमस्कार किया (चकुर्नति १८५)! इसके बाद यह पूछे जाने पर कि वे कुन्दकुन्द मुनि किस उपाय से यहां आसकेगे सीमंधर स्वामी ने कहा ( अवदत् १८६) कि उनके पूर्व जन्म के दो मित्रों रविकेतु और चन्द्रकेतु को भेजना चाहिये । उक्त दोनों देव कुन्द कुन्द को लेजाने के लिये यहां (भारत में) आधेगे, उस वक्त यहां रात्रि का समय होने से और यह जानकर कि ध्यानमग्न मुनि रात्रि को बोलते नहीं वे नमस्कार करके वापिस चले
* इस अंश में भी कहीं कहीं कुछ भविष्यकालीन क्रियाओं के स्थान पर 'प्रायुः', 'संप्रायुः, 'चक्र :' और 'अवदत्' जैसी भूतकालीन क्रियाओं का ग़लत प्रयोग पाया जाता है। इसी से यहां जानबूझ कर 'प्राय:' शब्द का व्यवहार किया गया है।