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[३१] इस तरह पर उक्त भविष्य कथन हर तरह से विरुद्ध तथा आपत्ति के योग्य पाया जाता है। भगवान महावीर जैसे आप्त पुरुषों के द्वारा ऐसे विरुद्ध कथनों का प्रणयन नहीं बन सकता। चूकि यह सब कथन भगवान महावीर के मुख से कहलाया गया है-उनके सिर पर इसका सारा भार रक्खा गया है-,इसलिये इससे साफतौर पर प्रन्थका जालीपन सिद्ध होता है।
३. महावीर के नाम पर असम्बद्ध प्रलाप ।
उक्त ( नं०२ में उद्धृत ) भविष्य वर्णन के अनन्तर पद्य नं० १५७ में राजा श्रेणिक को कुन्दकुन्द मुनि का चरित्र सुनने की प्रेरणा की गई है और फिर उन मुनिराज का भावी वृत्तान्त सुनाया गया है, जो पद्य नं. ४९७ पर जाकर सामाप्त हुआ है । इस प्रकरण के आदि अन्त के दोनों पद्य इस प्रकार हैं
मुनेस्तस्य श्रुणुध्वं च वृत्तमानन्ददायकम् । एकाग्रमनसा भूप कर्मेन्धनहुताशनम् ॥१५७॥ इत्थं श्रीणिक भूप सर्वगदितं वृत्तं मया तेऽखिलम् पापौघस्य विनाशकं सुविमलं श्रीकुन्दकुन्दस्य वै। चित्ते त्वं कुरु धारणं च मनसः शुद्धं करं नन्ददम्
अग्रे धर्मविवर्द्धकं वरसुरैः पूज्यं च पूज्योदयम् ॥४९७॥
इन से स्पष्ट है कि कुन्दकुन्द का यह सब ३४० पद्यमय भावी वृत्तान्त महावीर के द्वारा राजा श्रेणिक के प्रति कहा गया है । अब इस वृत्तान्त का कुछ परिचय भी लीजिये
वृत्तान्त के प्रारंभिक अंश (श्लोक नं० १५८ से १९८