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जायंगे; प्रातः काल शिष्योंसे देवोंके आगमन आदिका र मालूम करके कुन्दकुन्द इस प्रकारका दुपट नियम लकि जबतक सीमंधर स्वामीको दर्शन-प्राप्ति न होगी तबतक मेरे चार प्रकारके आहारका त्याग है। इसके बाद वे दोनों देव फिर दिनके समय आयंगे ओर उनके विमानमें बैठकर कुन्दकुन्द सीमंधर स्वामीके पास जायंगे।' पिछले कथन का सूचक अन्तिम वाक्य इस प्रकार है:
तद्विमाने समारुह्य यास्यति स मुनीश्वरः। केवलं धर्मकायार्थ पूर्वपुण्येन प्रेरितः ॥१८॥
परन्तु इस क्थनके बाद ऐसा मालूम होता है कि भगवान् अपनी भविष्य वर्णनाकी बातको भूलकर एकदम बदल गये हैं और इसलिये उन्होने विमानारूढ़ कुन्दकुन्दका शेष जीवन चरित्र अपन पूर्व कथनके विरुद्ध भूतकालीन क्रियाओं में इस डगसे कहना प्रारम्भ कर दिया है मानो कुन्दकुन्द कोई भूतकालीन ऋपि थे और वे भगवान् महावोरस पहिले हुए है । महावोरके इस उत्तर कथनकी कुछ बाते सूचनामात्र क्रमश: इस प्रकार हैं -
"विमानारूढ़ कुन्दकुन्दने अनेक पर्वतों, आश्चर्यों और संपूर्ण पृथिवीको देखते हुए आकाशमे गमन किया (चकार गमनं १९९), विमानसे उतर कर सीमंधर प्रभुको सभामें प्रवेश किया (विवेश २०० ), उन्हे देखाx, तीन प्रदक्षिणाएं दी, उनका स्तवन प्रारंभ किया, अपने लघु शरीरका ख़याल कर कहाँ बैठने के सम्बन्धमें कुछ विचार किया और फिर सीमंधर स्वामोके पोठाधोभागमें अपना आसन ग्रहण किया। उस
x यहां 'ददर्श' और आगे ददौ', 'आरेभे' आदि मूल क्रियापदोंको साथमे न दिखलाकर उनका अर्थ अथवा आशय ही दे दिया गया है।