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परसे वीरसेन आचार्यकी कृति जाना जाता है । और इससे तीसरी बात यह फलित होती है कि 'महाधवल' प्रन्थका विषय इस 'सूर्यप्रकाश' प्रन्थ के विषयसे एकदम भिन्न है और इसलिये यह ग्रंथ जिस 'अनागतप्रकाश ग्रंथके आधार पर बतलाया जाता है उसके उद्धारका सम्बन्ध महाधवलके साथ नहीं जोड़ा जा सकता ।
चौथे, नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने 'अनागतप्रकाश' आदि नामके तीन ग्रन्थ बनाये हैं, इसकी भी अन्य कहींसे कुछ उपलब्धि और सिद्धि नहीं होती। उनके बनाये हुए तीन प्रसिद्ध प्रन्थ हैं, जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं और वे हैं गोम्मटसार, त्रिलोकसार और लब्धिसार - जिसमें क्षपणासार भी शामिल है। 'बाहुबलि चरित' में भी नेमिचन्द्र के नामके साथ इन्हीं तीनों प्रन्थोंका उल्लेख पाया जाता है और लिखा है कि वे सिद्धान्तसागरको मथकर प्राप्त किये गये हैं, जिससे धवलादि सिद्धान्तप्रन्थों परसे उन्होंके उद्धृत किये जानेको स्पष्ट सूचना मिलती है— दूसरों की नहीं । यथा:
सिद्धान्तामृतसागरं स्वमतिमन्थक्ष्माभृदालोड्यमध्ये, aise फलप्रदानपि सदा देशी गणाग्रेसरः । श्रीमद्गोम्मटलब्धिसारविलसत् त्रैलोक्यसारामरदमाज श्री सुरधेना चिन्तितमणीन् श्रीनेमिचन्द्रो मुनिः ॥
सूर्यप्रकाशके विधाताने नेमिचन्द्राचार्यकी कृतिरूपसे इन प्रन्थोंका नाम तक भी नहीं दिया ! इनके स्थान पर दूसरे ही तीन नवीन ग्रंथोंकी कल्पना कर डाली है, जिनका कहीं कुछ पता तक भी नहीं है !! हां, अनुवादक महाशयको कुछ ख़याल आया और उसने अपनी तरफ़से लिख दिया है कि आपके " प्राकृतके ग्रंथ- गोम्मटसारादि प्रसिद्ध हैं" ।