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[ २७ ] महावीर के समवसरण में राजा श्रेणिक के पहुंचने का और भगवान् से पञ्चमकालभावी प्राणियों के सम्बन्ध में एक प्रश्न "पञ्चमे कीदृशा भूता: का चेष्टा कीदृशो क्रिया। भविष्यन्ति कथं ते हि" इत्यादि रूप से पूछने का उल्लेख करते हुए प्रश्न के उत्तर रूप प्रथके विषय का प्रारंभ किया गया है। भगवान ने “श्रुणुत्वं भावि तीर्थश वर्णनं पंच मस्य वै (७८)" इत्यादि रूप से उत्तर देते हुए और कुछ भविष्य का वर्णन करते हुए कहा है
सहस्रार्धेषु वर्षेषु नाशो धर्मस्य वा पुनः । भविष्यन्ति पुनर्धर्ममार्गजैनप्रभावकाः ॥१५३॥ भद्रयाहुस्तथा भूप जिनसेन ऋषीश्वरः । समन्तभद्रयोगीन्द्रो बौद्धमातंगसिंहभः॥१५४॥ इत्याद्या वरयोगीन्द्रा वर्तयिष्यन्ति निश्चयात् । दिशावासधरा: पूज्यादेवमानववृन्दतः ॥१५५॥ पश्चादमुनिजायाप्रमाब्दे मगधेश्वर ।
कुन्दकुन्दाभिधो मौनी भविष्यति सुरार्चितः ॥१५६॥ ___ इस भविष्य वर्णन में बतलाया है कि पाँचसौ वर्ष में धर्म का नाश हो जायगा, फिर जैनधर्म को पुनः प्रभावना-प्रतिष्ठा करने वाले भद्रबाहु, जिनसेन और समन्तभद्र आदि उत्तम योगीन्द्र होंगे। बाद को कुछ वर्ष बीतने पर-जिन की संख्या 'जाया' शब्द का प्रयोग संदिग्ध होने से ७० ऊपर कुछ शतक जान पड़ती है-कुन्दकुन्द नाम के मुनि होंगे।
यह वर्णन आपत्ति के योग्य है; क्योंकि भगवान महावीर से पाँचसौ वर्ष के भीतर जैनधर्म का नाश अथवा लोप नहीं हुआ, ५०० वर्ष की समाप्ति पर भी जैनधर्म तब आज से कहीं बहुत अधिक अच्छे ढंग से प्रचलित था । उस वक्त उस के अनुयायियों में ग्यारह अङ्गादिक के पाठी तक भी मौजूद थे, जिनका आज शताब्दियों से अभाव है। दूसरे, कुन्दकुन्द का