________________
[ १९ ] होने लगता है कि इस प्रन्थमें सूर्य के प्रकाशका विवेचन होगा अथवा सूर्य क्या वस्तु है, उसका उदय-अस्त तथा गति स्थिति आदि किस प्रकार होती हैं और उनका क्या परिणाम निकलता है, इत्यादि ज्योतिःशास्त्र सम्बन्धी बातोंका वर्णन होगा । परन्तु यह सब कुछ भी नहीं है। प्रथमें भगवान महावीरके मुखसे भावी मनुष्योंके आचार-विचार, उनको प्रवृत्ति, कतिपय धर्मों के प्रादुर्भाव और कुछ घटनाओं आदिका वर्णन यद्वा. तद्वा भविष्य-कथनके रूपमें कराया गया है, और इसलिये ग्रंथ के विषयको देखते हुए ग्रन्थका यह नाम कुछ बड़ा ही विचित्र जान पड़ता है और उस परसे ग्रंथके यों ही कल्पित किये जाने की थोड़ी सी प्राथमिक सूचना मिलती है। साथ ही, यह भी मालूम होता है कि ग्रन्थकार कोई विशेष बुद्धिमान अथवा समझ-बूझका आदमो नहीं था। उसके कथनानुसार यह प्रन्थ प्रायः 'अनागतप्रकाश' नामक किसी ग्रंथके आधार पर रचा गया है-जो संभवतः ग्रंथकार महाशयकी कल्पनामें ही स्थित जान पड़ता है और इसलिये इसका नाम यदि 'भविष्य. प्रकाश' जैसा कुछ होता तो विषयके साथ भी उसका कुछ मेल मिल जाता, किन्तु ऐसा नहीं है । विषयके साथ नामका सामंजस्य स्थापित करनेको ग्रंथकारको कोई समझ ही नहीं पड़ी और इसीसे उसका यह नामकरण बहुत कुछ निरंकुशता तथा बेढंगेएनको लिये हुए जान पड़ता है । अस्तु ।
ग्रन्थका जालीपन चाब मैं सबसे पहले पाठकोंके सामने कुछ ऐसे प्रमाण
उपस्थित करता हूँ जिनसे साफ तौर पर इस ग्रंथ का जालीपन पाया जाता है