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[ १५ ] ये सब शिष्य-प्रशिष्यजन और पं० चम्पालाल जी प्रायः उसी समय की पौध हैं जबकि भट्टारकोय लीलाओं के विरोध रूप दिगम्बर तेरहपंथ अच्छी तरह से उत्पन्न हो चुका था, अपना विस्तार कर रहा था और भट्टारकानुयायिओं तथा तेरहपंथियों में द्वन्द्व युद्ध चल रहा था। चर्चासागर और सूर्य प्रकाश दोनों उसी समय की स्पिरिट ( मनोवृत्ति) को लिये हुए हैं और उसी युद्ध का परिणाम हैं। उस वक्त इस प्रकार का कितना ही साहित्य निर्माण हुआ जान पड़ता है, परन्तु तेरहपंथी विद्वानों के प्रबल युक्तिवाद और प्रभाव के सामने उस का अधिक प्रचार नहीं हो सका था। किन्तु दुःख तथा खेद का विषय है कि आज कुछ पंडित लोग, सभवतः अपने पूर्व जन्मों के संस्कारक्श, उसी मिथ्यात्वपोषक भ्रष्ट साहित्य को प्रचार देने के लिये उतारू हुए हैं और इस के लिये उन्होंने नग्न भट्टारकीय मार्ग का नया अवलम्बन लिया है, क्योंकि पुराने सवस्त्र भट्टारकीय मार्ग को असफलता का उन्हें अनुभव हो चुका है । अन्यथा, सोमसेन-त्रिवर्णाचार जैसे प्रन्थों पर अटल विश्वास रखने के कारण वे अन्तरंग में मुनियों के सर्वथा नग्न रहने के पक्षपाती नहीं हो सकते । मुनि वस्त्र भो रक्खें और नग्न भी कहलाएं, इसीलिये तो भट्टारक सोमसेन जी ने, जो अपने को 'मुनि' तथा 'मुनीन्द्र' तक लिखते हैं, नग्न की विचित्र परि. भाषा कर डाली है। और अपने त्रिवर्णाचार के तृतीय अध्याय की निम्न पक्तियों में दस प्रकार के नग्न बतला दिये हैं :
अपवित्रपटो नग्नो नग्नश्चाई पटः स्मृतः । नग्नश्च मलिनोद्वासी नग्नः कोपोनवानपि ॥२१॥ कषाय वाससा नग्नो नग्नश्चानुत्तरीयमान् । अन्तः कच्छोवहिः कच्छोमुक्तकच्छस्तथैवच ॥२२॥ साक्षानमः स विशेयो दश ननाः प्रकीर्तिताः।