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(२) उले नि:शुल्क चिकित्सा मिले। (३) उसे वृद्धावस्था का इतना अनुदान मिले कि वह
सुख से जीवन यापन कर सके। (४) उसे वेरोजगारी से निश्चितता हो । यदि उसे अपने
योग्य रोजगार न मिल सके तो बेरोजगारी के समय उसको राज्य की ओर से पर्याप्त नुदान
मिलना चाहिये। यह चार आवश्यकताएं ऐसी हैं कि इन सुविधाओं के बिना आज भारत में अनेक परिवार भूख, बीमारी, वेरोजगारी तथा अन्य भी अनेक कष्टों का शिकार बने हुये हैं। हमारी सरकार इस सारी स्थिति को जानती हुई भी आर्थिक दासता मैं फंसी होने के कारण लाचार है। ऐसी स्थिति मे भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी शक्ति भर इस विषय मे अपने देश भाइयों की सहायता करे। विश्ववन्धुत्व तथा भगवान महावीर स्वामी का अनुयायी बनने का दम भरने वाले जैनियों का तो यह प्रधान कर्तव्य है कि वह अपनी आय का एक । निश्चित अंश दान के लिये अलग रख कर ऐसी व्यवस्था करें कि उनके धन से जनता को निःशुल्क शिक्षा मिले, नि शुल्क अस्पताल खोले जावें, जिनमे नत्र विभाग मे रोगियों को इंग्लैंड के समान विना मूल्य चश्मे भी दिये जावे । उनको इस प्रकार के फंड भी बनाने चाहिये, जिनके द्वारा वृद्धों तथा असर्मथों की सेवा की जावे।
पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज का जीवनचरित्र पढ़ कर यदि हमारे जीवन मे इस प्रकार की प्रेरणा उत्पन्न न हुई तो यह कहना चाहिये कि इस जीवन चरित्र को पढ़ने वाला व्यक्ति सहृदय नहीं है। ज्य सोहनलाल जी अपने विद्यार्थी जीवन में