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किये जाने की आवश्यकता है, जिसका आचरण सर्वथा उच्चतम कोटि का तथा विशुद्ध हो ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के द्वारा पाठकों को एक ऐसा ही जीवनचरित्र देने का यत्न किया गया है। इस जीवनचरित्र में दिखलाया गया है कि बालक सोहनलाल बचपन से ही बुद्धिमान होते हुए भी अपने माता पिता का अत्यत आज्ञाकारी बालक था। आजकल के बच्चे प्रायः हठी, आलसी, उदण्ड तथा नटखट होते हैं। बालक सोहनलाल में इनमे से एक सी दुर्गुण नहीं था। अतएव उनका शैशव काल आजकल के बालकों के लिये शिक्षाप्रद एव अनुकरणीय है। आजकल के बालक माता पिता के दण्ड से बचने के लिये प्रायः भूठ बोल दिया करते हैं, किन्तु सोहनलाल जी ने एक अमूल्य शीशा तोड़ कर ऐसी स्थिति में भी असत्य भाषण नहीं किया, जब कि उन पर किसी को भी सदेह नहीं था और सारा दोष नौकरों पर डाला जा रहा था। उनका आत्मा इस बात से तिलमिला उठा कि उनके दोष का दण्ड किसी अन्य व्यक्ति को मिले। आज संसार मे ऐसे कितने वालक हैं, जिनमें अपना दोष स्वीकार करने योग्य ऐसी निर्भीकता हो। ___अपने विद्यार्थी जीवन में तो श्री सोहनलाल जी ने अपने
और भी उच्चकोटि के चरित्र का परिचय दिया। आजकल के विद्यार्थी प्रायः उच्छखल होते हैं। क्लास में पढ़ने लिखने की अपेक्षा वह अपने मार्ग मे आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का ऐसा मखौल उड़ाने का यत्न किया करते हैं, जिस से उसे कष्ट हो। किन्तु सोहनलाल जी इन दोषों से शून्य थे। धारी द्वारा किसानके जूते छिपा देने का विद्यार्थीसुलभ प्रस्ताव किये जाने पर भी आपने इसका विरोध करके धारी के सन्मुख पवित्र हास्व का.