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(ब) (वृद्धश्रवा) बहुत कीर्ति बाजा (इन्द्रः) इन्द्र देवता (न:) हमारे लिये (स्वस्ति) कल्याण को (दधातु) स्थापित करे । और (पूषा) पुष्टि करने वाला सूर्य देवता (विश्ववेदाः) सर्वज्ञाता (न:) हमारे लिए (स्वस्ति) कल्याण को धारण करे। (तायं.) तेजस्वी (अरिष्टनेमिः) भगवान् अरिष्टनेमि (न.) हमारे लिये (स्वस्ति) कल्याण करे ।, (वृहस्पतिः) वृहस्पति देवता (न.) हमारे लिये (स्वस्ति) कल्याण करे । ___इस मंत्र मे स्पष्ट रूप से अन्य दिक देवताओं के साथ
जैनियों के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान को भी—जिनको — जैन शास्त्रों में 'अरिष्टनेमि' भी कहा जाता है—गिनाया गया है।
जैन ग्रंथों के अनुसार भगवान अरिष्टनेमि यज्ञ के देवता हैं। इसलिये उनको अन्य देवताओं में गिनाया गया। किन्तु आधुनिक अर्थ करने वाले इस शब्द का यौगिक अर्थ 'अरिष्ठों का नियमन करने वाला' करके इस शब्द के जैन महत्व को कम करने का प्रयत्न करते हैं। किन्तु यह अर्थ करने में किसी एक देवता का नाम नहीं बनता।
इस मंत्र के अतिरिक्त अन्य भी अनेक वैदिक मंत्रों में जैन तीर्थकरों के नाम दिये गए हैं, जिससे प्रकट है कि वेदों के निर्माण काल में जैनियों का अस्तित्व अवश्य था। इसके
अतिरिक्त वेद मंत्रों में ऐसे मत का भी वर्णन मिलता है, जो वेद विरोधी था। सो उस प्राचीन काल में ऐसा मत जैन धर्म ही हो सकता था।
'इस सारे वर्णन से यह सिद्ध है कि जैन धर्म एक अनादिकालीन धर्म है, जिसका उपदेश प्रत्येक युग की आदि में प्रथम जैन तीर्थकर दिया करते हैं। इस वार उसका प्रथम वार उपदेश भगवान् ऋषभदेव ने दिया था।
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वृन्दश्रवा-प्रतिज्ञा धारक जैन श्रावक हो सकता है।