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श्राद्धविधि / १८
अभिप्राय है ?' और 'मैं कैसा हूँ ?' यानी 'मेरा जीवन कैसा है ?' 'अपने में रहे कौन से दोषों का मैं त्याग नहीं कर पा रहा हूँ ?'
'आज कौनसी तिथि है ?' 'क्या श्राज किसी अरिहन्त परमात्मा का कल्याणक है ?" 'आज मुझे क्या करना चाहिए ?"
इस धर्मजागरिका में भाव से स्व कुल, धर्म और व्रतादि का स्मरण करना चाहिए । द्रव्य से गुरु आदि का क्षेत्र से अपने देश, गाँव-नगरं का और काल से प्रभात आदि का विचार करना चाहिए ।
इस प्रकार नित्य धर्मजागरिका करने से जीव सावधान बनता है । किये हुए पापों और दोषों का स्मरण करने से उनके त्याग की और लिये हुए नियमों के पालन की वृत्ति पैदा होती है । इस प्रकार चिन्तन करने से नये गुरणों का एवं धर्म का उपार्जन होता है ।
आनन्द - कामदेव आदि श्रावक भी धर्मजागरिका करते थे और उससे प्रतिबोध पाकर श्रावक की विशेष प्रतिमाओं को वहन करने में तत्पर बने थे ।
प्रातः काल में धर्मजागरिका करने के बाद यदि प्रतिदिन प्रतिक्रमण करने का नियम हो तो प्रतिक्रमण करना चाहिए । ( प्रतिक्रमण की विधि आगे बतायेंगे )
कायोत्सर्ग विधि
यदि प्रतिदिन प्रतिक्रमण करने का नियम न हो तो भी रागादिमय कुस्वप्न और द्वेषादिमय दुःस्वप्न एवं अनिष्टतासूचक स्वप्न के प्रतिघात के लिए कायोत्सर्ग करना चाहिए। रात्रि में स्त्रीसेवन का कुस्वप्न देखा हो तो १०८ श्वासोच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिए ।
( १०८ श्वासोच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग के लिए 'सागरवरगंभीरा' तक चार बार लोगस्स सूत्र गिनना चाहिए । )
'व्यवहार भाष्य' में कहा है- 'स्वप्न में प्राणि-वध, झूठ, चोरी, परिग्रह और स्त्रीसेवन कराया हो या अनुमोदन किया हो तो एक सौ श्वासोच्छ्वास प्रमाण ('चंदेसु निम्मलयरा' तक चार लोगस्स का) कायोत्सर्ग करना चाहिए और स्वप्न में स्त्री-सेवन किया हो तो एक सौ आठ श्वासोच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिए ।
'चंदेसु निम्मलयरा' तक लोगस्स सूत्र पच्चीस श्वासोच्छ्वास प्रमाण है । ऐसे चार लोगस्स अथवा दशवेकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन में कहे गये महाव्रतों का चिन्तन अथवा अन्य किन्हीं पच्चीस श्लोकों का चिन्तन करना चाहिए ।
प्रथम 'पंचाशक' की टीका में कहा है-यदि मोहोदय से स्वप्न में स्त्री-सेवन रूप कुस्वप्न देखा हो तो तुरन्त ही जागकर 'ईरियावही' करके एक सौ आठ श्वासोच्छ्वासप्रमारण कायोत्सर्ग करना चाहिए ।
कायोत्सर्ग करने के बाद भी यदि प्रातः (राई) प्रतिक्रमण में बहुत देर हो और पुनः दीर्घ समय तक नींद आ जाय तो पुनः उसी प्रकार से कायोत्सर्ग करना चाहिए ।